एक हफ्ते के अंदर उत्‍तराखंड में मिली दूसरी रहस्‍यमयी गुफा, समुद्र मंथन के मेरु पर्वत जैसा आकार

उत्तराखंड में एक हफ्ते के अंदर दूसरी रहस्यमयी गुफा मिली है। पिथौरागढ़ के गोबराड़ी गांव में स्थित यह गुफा समुद्र मंथन के मेरु पर्वत जैसी दिखती है। कत्यूरी शासनकाल में इसका इस्तेमाल सैन्य मोर्चे के रूप में किया जाता था। गुफा के अंदर जमा मलबा हटाने के बाद यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है। पुरातत्व विभाग की टीम ने गुफा का निरीक्षण किया है।

तहसील डीडीहाट के गोबराड़ृी गांव में प्रकाश में आयी सुरंग पूर्व मध्य कत्यूरी काल की है। कत्यूरी शासनकाल में यह एक सैन्य मोर्चा प्रतीत होती है। इस तरह की सुरंग नैनीताल, अल्मोड़ा आदि स्थानों पर भी हैं।

गोबराड़ी की यह सुरंग समुद्र मंथन के समय प्रयोग में लाए गए मेरु पर्वत की तरह दृश्यमान है। सुरंग के अंदर जमा मलबा हटा दिया जाए तो यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है। विगत पांच फरवरी को ही जागरण ने गुफा मिलने की खबर लगाई थी। जिसका लिंक नीचे यह है।

निरीक्षण के लिए पहुंची चार सदस्यीय टीम
गुरुवार को क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डा. चंद्र सिंह चौहान के नेतृत्व में चार सदस्यीय टीम निरीक्षण के लिए पहुंची। निरीक्षण के बाद डा. चौहान ने यह जानकारी देते हुए बताया कि कत्यूरी शासनकाल के दौरान इस स्थल का प्रयोग सैन्य मोर्चा के रुप में किया जाता होगा। चारों तरफ बहने वाली नदी के मध्य ऊंचाई पर स्थित इस स्थल से चारों तरफ नजर जाती है।

सिंगल लाइन फार्मेशन वाली सुरंग भी मौजूद
सुरंग के निरीक्षण के दौरान जो देखा गया उसमें यही पाया गया कि यह सिंगल लाइन फार्मेशन वाली सुरंग है। जबकि नैनीताल के कल्याण पुर की सुरंग में डबल लाइन फार्मेशन है।

सिंगल लाइन फार्मेशन का तात्पर्य सैनिक एक लाइन में एक ही तरफ चलते होंगे। यह सुरंग अन्य सुरंगों से कुछ अलग हट कर है। उन्होंने बताया कि इसके चारों तरफ का जो भूगोल व स्थिति है उसे स्पष्ट होता है कि यह सैन्य दृष्टि से मोर्चाबंदी के लिए उपयुक्त है।
सुरंग के अंदर जमा है मलबा
सुरंग में एक व्यक्ति सामान के साथ चल सकता है। हालांकि सामान उठाने के लिए दूसरे की मदद की आवश्यकता होगी। चौहान के अनुसार अंदर मलबा जमा है। मलबा हटाया जाए तो इसके अंदर मुहाने हो सकते हैं जिनसे प्रकाश भी मिलता होगा। यह पर्यटन की दृष्टि से बेहद उपयुक्त है।

पर्यटन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण यह सुरंग
एक तरफ लगभग 15 मीटर और दूसरी तरफ 7 से 8 मीटर तक सुरंग है। अंदर जमा मिट्टी हटाए जाने पर ही वास्तविक लंबाई का पता चलेगा। यह सुरंग पर्यटन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। निरीक्षण टीम में डा. चौहान के साथ चंद्रशेखर उपाध्याय, किशन किशोर और अर्जुन सिराड़ी थे।

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