नई दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार वीवीपीएटी (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के साथ जुड़ा वह यंत्र जिससे मतदाता पर्ची निकलती है) निजी कंपनियों से खरीदना चाहती थी। लेकिन चुनाव आयोग ने सरकार के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था। सूचना के अधिकार के जरिए ये जानकारी उजागर की गई है। आयोग ने सरकार को भेजे अपने जवाब में इस प्रस्ताव को खारिज किए जाने के पुख्ता आधार भी बताए थे।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक मामला थोड़ा पुराना है पर बेहद अहम। केंद्रीय कानून मंत्रालय ने जुलाई और सितंबर- 2016 के बीच इस बाबत आयोग को तीन पत्र भेजकर उससे राय मांगी थी। उस वक्त नसीम जैदी मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे। उन्होंने सरकार को 19 सितंबर 2016 को अपना जवाब भेजा। इसमें साफ कहा कि यह ‘संवेदनशील जिम्मेदारी है। इसे निजी कंपनियों को नहीं सौपा जा सकता। इससे चुनाव प्रक्रिया की साख और निष्पक्षता प्रभावित होगी।’ सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि वह चरणबद्ध तरीके से ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों) को वीवीपीएटी से लैस करे। इसके बाद आयोग भी इस प्रक्रिया को 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले पूरी करने की तैयारी में है। जब से देश में ईवीएम चलन में आई हैं तभी से इनके निर्माण और आपूर्ति का जिम्मा भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) बेंगलुरु और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) हैदराबाद के पास है। फिलहाल सार्वजनिक क्षेत्र की यही कंपनियां सभी मशीनों को वीवीपीएटी से लैस करने में भी लगी हैं। इस बीच ईवीएम की विश्वसनीयता पर तमाम पार्टियां और उनके नेता लगातार सवाल भी उठाते रहे हैं। इसीलिए सरकार और चुनाव आयोग की इच्छा है कि जल्द से जल्द सभी मशीनें वीवीपीएटी से युक्त हो जाएं ताकि विवाद की स्थिति में मतदाता पर्चियों से मतदान के नतीजे की पुष्टि हो सके।

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