देश की राजधानी दिल्ली और मुंबई के बीच दौड़ने वाली रेलगाड़ी आम तौर पर 1500 किलोमीटर से ज़्यादा फ़ासला तय करने में 16 घंटे लगती है. हालांकि, इसका तय वक़्त क़रीब 14 घंटे है.इसके बावजूद इस रेलगाड़ी की तारीफ़ करने वाले कम नहीं है. देश के दो सबसे शहरों को इतने समय में जोड़नी वाली ये ट्रेन वाक़ई ख़ास है.लेकिन अब फ़र्ज़ कीजिए एक ऐसी सड़क जो इस रेलगाड़ी से भी कम समय में आपको इस एक शहर से दूसरे में पहुंचा दे.कुछ ऐसा ही सपना केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग नितिन गडकरी ने दिखाया. उन्होंने सोमवार को बताया कि दिल्ली से सटे गुड़गांव और मुंबई के बीच नया एक्सप्रेसवे बनाया जाएगा और इस प्रोजेक्ट का खर्च 1 लाख करोड़ रुपए होगा.
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, ”1 लाख करोड़ रुपए एक्सप्रेसवे पर खर्च किए जाएंगे…नितिन गडकरी ने दिल्ली-NCR में भीड़भाड़ कम करने और जाम घटाने के लिए 356 अरब रुपए की कुल 10 परियोजनाओं पर काम चल रहा है.’ऐसा बताया जा रहा है कि दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय राजमार्ग 8 के 1450 किलोमीटर का फ़ासला घटाकर 1250 किलोमीटर तक ले आएगा. और साथ ही इस दूरी को पूरा करने में 20-24 घंटे के बजाय 12 घंटे लगा करेंगे.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक ये एक्सप्रेस प्रोजेक्ट हरियाणा के मेवात और गुजरात के दाहोद जैसे दो सबसे पिछड़े ज़िलों से गुज़रेगा. इसका पूरा रूट दिल्ली-गुड़गांव-मेवात-कोटा-रतलाम-गोधरा-वडोदरा-सूरत-दहिसर-मुंबई है.गडकरी का ये भी कहना है कि काम को रफ़्तार देने के लिए दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस पर 40 अलग-अलग जगह पर काम शुरू किया जाएगा.
लेकिन क्या ये एक्सप्रेसवे कामयाब रहेगा? क्या केंद्र सरकार वाक़ई इसे साल 2020-21 तक पूरा कर सकेगी? सवाल कई हैं और जवाब वक़्त देगा.इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक ये एक्सप्रेसवे फ़ासले को पूरा करने में लगने वाला समय क़रीब 8 घंटे कम कर देगा.
इसकी एक प्रमुख वजह ये है कि ये रास्ता कम विकसित इलाकों से गुज़रेगा. क्योंकि इन इलाकों में आबादी कम बसती है, ऐसे में यहां ट्रैफ़िक कम होगा और हादसों की आशंका भी कम होगी. ज़ाहिर है, भीड़ कम होने की वजह से गाड़ी चलाने वाले स्पीड कर पाएंगे.
ये परियोजना चार चरणों में पूरी की जाएगी. दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का पहला चरण शुरू हो चुका है. ये दिल्ली को जयपुर और वडोदरा को मुंबई से जोड़ेगा. इसके बाद जयपुर को कोटा और कोटा को वडोदरा से जोड़ा जाएगा.हालांकि, इस परियोजना की राह में सबसे बड़ा रोड़ा ज़मीन अधिग्रहण साबित हो सकता है. इस पर करोड़ों रुपए खर्च करने होंगे.

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