इस विधानसभा सत्र मे नहीं पास हुआ आंदोलनकारियों को आरक्षण का विधेयक, प्रवर समिति को भेजा : समिति 15 दिन में संशोधनों के साथ अपनी रिपोर्ट देगी। उसकी रिपोर्ट के आधार पर बिल को पारित किया जाएगा। इसके लिए एक दिन का विधानसभा सत्र बुलाया जाएगा।

विधानसभा सत्र के दौरान सदन में चर्चा के लिए पेश चिह्नित आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक को सर्वसम्मति से प्रवर समिति को भेज दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण प्रवर समिति का गठन करेंगी। समिति 15 दिन में संशोधनों के साथ अपनी रिपोर्ट देगी। उसकी रिपोर्ट के आधार पर बिल को पारित किया जाएगा।

इसके लिए एक दिन का विधानसभा सत्र बुलाया जाएगा।सदन में आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों के लिए आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान सदस्यों ने इसके कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए। उन्होंने विधेयक में आंदोलन के दौरान घायलों और सात दिन अथवा इससे अधिक अवधि तक जेल में रहे आंदोलनकारियों को लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर समूह ग और घ के पदों पर सीधी भर्ती में आयु सीमा और चयन प्रक्रिया में एक साल की छूट के प्रावधान पर आपत्ति की।आपत्ति करने वालों में कांग्रेस विधायक भुवन कापड़ी, भाजपा विधायक विनोद चमोली व मुन्ना सिंह चौहान शामिल थे। पक्ष-विपक्ष की मांग पर विधेयक को सर्वसम्मति से प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव पास कर दिया गया।

आंदोलनकारियों के मुद्दे पर भावुक हुए मंत्री अग्रवाल
सदन में राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मुद्दे पर चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल भावुक हो गए। आंदोलन से जुड़ीं घटनाओं को याद करते हुए बोले- मैं भी राज्य आंदोलनकारी हूं।

भाजपा विधायक विनोद चमोली और कांग्रेस के भुवन कापड़ी से संबद्ध कर राज्य आंदोलनकारियों की भावनाओं का सम्मान कर आरक्षण विधेयक को प्रवर समिति को सौंपने का आग्रह किया। अग्रवाल ने कहा कि वे राज्य आंदोलनकारी रहे हैं। आंदोलन के दौरान महिलाओं के साथ जो अत्याचार हुआ, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इतिहास के पन्नों में वह दिन सबसे दर्दनाक रहा। डोईवाला चौक में आंदोलन के समय उन्हें घसीट कर ले जाया गया था।

फिर लटका आंदोलनकारी का आरक्षण विधेयक
एक बार फिर राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सरकारी सेवा के सीधी भर्ती के पदों में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का विधेयक लटक गया है। हरीश रावत सरकार में भी ऐसा आरक्षण विधेयक पारित कराकर राजभवन भेजा गया था, लेकिन उसे करीब राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल पाई थी। सात साल बाद बिल राजभवन से लौटा था।
बिल में ये प्रमुख संशोधन प्रस्तावित
1. आंदोलन के घायलों व सात दिन अथवा इससे अधिक अवधि तक जेल में रहे आंदोलनकारियों की जगह चिन्हित राज्य आंदोलनकारी होना चाहिए
2. आंदोलनकारियों को लोक सेवा आयोग वाले समूह ग के पदों पर भी सीधी भर्ती में आयु सीमा और चयन प्रक्रिया में एक साल की छूट मिले।
3. लोकसेवा आयोग की सीधी भर्ती में राज्य महिला क्षैतिज आरक्षण की तरह 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मिलेगा।