पेइचिंग। बीते वर्ष भारत और चीन ने पिछले तीन दशकों के दौरान अपनी सबसे गंभीर सीमा संकट का सामना किया। उस दौरान चीन का सरकारी मीडिया करीब-करीब हर दिन ही युद्ध के खतरे को बता रहा था क्योंकि भारत और चीन दोनों ने ही अपनी अपनी सेनाएं भूटान के डोकलाम में आमने सामने खड़ी कर रखी थीं। तब यह लगभग असंभव लग रहा था कि केवल आठ महीने बाद ही मोदी और जिनपिंग के बीच एक अनौपचारिक बैठक होगी। लेकिन चीन के वुहान शहर में दोनों मिल रहे हैं। दोनों नेताओं के बीच बिना किसी एजेंडे के बातचीत होगी और जहां परस्पर मतभेदों पर बात करने के लिए पर्याप्त समय होगा। चीन और भारत दोनों ने एक दूसरे की सीमाओं पर बड़ी संख्या में सेना की तैनाती कर रखी है लेकिन इस बैठक का आयोजन अचानक नहीं हुआ है। अगस्त में सीमा विवाद कम होने के बाद रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ सितंबर में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मोदी और शी की मुलाकात हुई। इसके बाद भारत के विदेश सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री एक एक कर चीन के उच्चस्तरीय दौरे पर गए। फिर से दोस्ती के प्रयास किए गए। फरवरी में, भारत सरकार ने एक निजी नोट भेजा जिसमें अधिकारियों से तिब्बत से दलाई लामा के निर्वासन के 60 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम से दूर रहने को कहा गया। चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है और विदेशी नेताओं को उनसे दूर रहने की सलाह देकर उन्हें अलग थलग करने की कोशिश करता है। मार्च में मोदी ने जिनपिंग के दोबारा राष्ट्रपति बनने पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि इससे यह दिखता है कि जिनपिंग को पूरे देश का समर्थन हासिल है। हाल के दिनों में चीन ने इसका सकारात्मक जवाब भी दिया। वो चीन से भारत में आने वाली नदियों के हाइड्रोलॉजिकल डेटा फिर से भारत से साझा करना शुरू करेगा और साथ ही उसने फिर से संयुक्त सैन्य अभ्यास की भी पेशकश की है, इन दोनों गतिविधियों को पिछले साल के संकट के दौरान रोक दिया गया था। सबसे पहले, भारत का मानना है कि पिछले साल के संकट के दौरान दोनों देशों के संबंधों में खतरनाक स्थिति साफ दिखी और उस तनाव की स्थिति पर नियंत्रण किया जाना जरूरी है- खासकर तब जब 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं। अगर इसे और अधिक व्यापक रूप में देखें तो चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना बड़ा है जबकि डिफेंस पर उसका खर्च तीन गुना अधिक है। हालांकि दोनों देशों की सीमा पर भारतीय सेना कई जगहों पर लाभ की स्थिति में है, इसके बावजूद सेना को अपनी ताक़त बढ़ाने में वक्त लगेगा। दूसरा, भारत उन कई मुद्दों पर बीजिंग से सहयोग की अपेक्षा रखता है जहां चीन का किरदार अहम हो जाता है, जैसे- पाकिस्तान में चरमपंथी समूहों पर दबाव बनाना और परमाणु व्यापार को नियंत्रित करने वाले न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत को दाखिला मिलना। तीसरा, भारत विश्व राजनीति में एक अनिश्चित दौर का सामना कर रहा है। भारत की चिंता यह है कि चीन भारत की बजाए उत्तर कोरिया संकट के कारण अमरीका से और अमरीका-रूस के तल्ख रिश्तों की वजह से रूस के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश करेगा। इसके मद्देनजर अच्छा यह है कि भारत अपने दांव अभी चल दे। रूस और चीन की धुरी के मजबूत बनने और अमरीका का चीन पर से नजरे हटाने को लेकर रूस में भारत के राजदूत रह चुके और भारत सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा पर सलाह देने वाली निकाय के अध्यक्ष पी।एस। राघवन ने चेतावनी दी, ष्समझदारी इसी में है भारत चीन के साथ बातचीत की लय को बरकरार रखे, भले ही दो बड़ी शक्तियों (अमरीका और रूस) के साथ हमारे रिश्तों पर पड़ी सिलवट से हम निपटते रहें। बेशक, यह चीन के लिए भी फायदेमंद है। पिछले साल, एशिया से यूरोप तक फैली चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) को सार्वजनिक रूप से अस्वीकार करने वाला भारत ही एकमात्र देश था। हाल ही में, अमरीका, जापान और यहां तक कि यूरोपीय संघ ने इस परियोजना पर संदेह व्यक्त किया है, उनका तर्क है कि इसका चीनी कंपनियों की ओर झुकाव है। इसमें आर्थिक महत्वकांक्षा से अधिक चीन की निहित रणनीति है। चीन अपनी इस योजना को पूरा करने के लिए भारत के साथ बैर कम करना चाहता है। वो पिछले साल एक दशक के अंतराल पर हुए भारत, अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुई बैठक को लेकर और उनके बीच चीन की ’बेल्ट ऐंड रोड’ परियोजना के विकल्प के प्रयासों को लेकर भी चिंतित है। मोदी को लुभा कर वह अमरीका और उसके मित्र देशों के साथ भारत की बढ़ती नजदीकियों को रोकना चाहता है। लेकिन इस गरमाहट के पीछे जमीन, समुद्र और आसमान में मुक़ाबले की बहाव अब तक के अपने चरम पर है। भारत ने अभी हाल ही में अपना सबसे बड़ा वायुसेना अभ्यास पूरा किया है, जिसमें यह प्रदर्शित किया गया कि वो कैसे केवल 48 घंटों में पाकिस्तान की सीमा पर स्थित पश्चिमी कमान से चीन की तरफ पूर्वी कमान पर सैकड़ों विमानों को कैसे पहुंचा सकता है। कुल मिलाकर जमीन पर जो हकीकत है उसे देखते हुए पिछली गर्मियों में दोनों देशों के बीच हुई तल्खी को ’सुलझ गया’ कहने के बजाए श्शांतश् कहा जाना उचित है।