देहरादून। असंगठित क्षेत्र के कामगारों की समस्याओं पर समुचित ध्यान नहीं दिये जाने से उनके हकों की अनदेखी हो रही है, विषेशकर घरेलू कामगारों के लिए अभी तक किसी भी तरह के कानूनों के न बनने से उनके सभी प्रकार के शोषण की सम्भावना बनी हुई है। इस लिए राज्य में घरेलू कामगारों के लिए अलग से बोर्ड एवं कानून बनाये जाने की तुरन्त आवश्यकता है।
हिमाद एवं असंगठित कामगार अधिकार मंच के तत्वावधान में आयोजित पैस कान्फ्रैस में आयोजकों ने कहा कि शहरी भारत के अनौपचारिक क्षेत्रों में घरेलू कामगार खासकर महिला घरेलू कामगार एक नियमित रूप से बढ़ता वर्ग है। पिछले तीन दशकों में पुरूष कामगारों की तुलना में इनकी संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। यह दुखद पहलू है कि यह क्षेत्र तेजी से बढ़ा जरूर है पर घरेलू काम के अवमूल्यन की मानसिकता के कारण दूसरों के घरों में वेतनयुक्त काम को भी कोई मूल्य नहीं दिया जाता और इसको काम भी नहीं समझा जाता। घरेलू काम का यह सामाजिक अवमूल्यन इन कामगारों को सामाजिक ढांचे की सबसे निचली पायदान पर रखता है। विभिन्न अघ्ययन दर्शाते हैं कि घरेलू काम का प्रशासन काफी अनौपचारिक है। घरेलू कामगार समाज के सबसे गरीब व अशिक्षित वर्ग से आती हैं। अध्ययन यह भी बताते हैं कि हाशियेदार जातियों से सम्बन्ध रखने वाली महिलाऐं घरेलू कामगार वर्ग का बड़ा हिस्सा हैं। अपने मौजूदा स्वरूप में यह दो पार्टियों के बीच अनुबन्ध नहीं बल्कि एक अनौपचारिक संबन्ध है जिसमें समझौते कामगारों के मोल-तोल की क्षमता व काम देने वाले की अच्छाई पर आधारित होते हैं। इस काम का कार्यक्षेत्र घर होता है जो इस संबन्ध को एक औनपचारिक स्वभाव प्रदान करता है।
भारतीय परिपेक्ष्य में घरेलू कामगार हमारी अर्थ व्यवस्था में महती भूमिका निभाने के बावजूद अदृश्य व अण्डर रिर्पोटेड वर्ग है। सामान्य तौर पर घरेलू कामों को कम करके आंका जाता है और बड़ी संख्या में घरेलू कामगार अधिक काम के बोझ, कम मजदूरी से घिरी व अपर्याप्त या न के बराबर सामाजिक सुरक्षा से अच्छादित हैं। सामाजिक-आर्थिक जाति गणना के आकड़ों के अनुसार यह वर्ग ग्रामीण जनसंख्या का 25 प्रतिशत व शहरी जनसंख्या का 2 प्रतिषत है। इनकी वास्तविक संख्या 3 करोड़ से ऊपर हो सकती है।
असंगठित कामगार अधिकार मंच के अजय रावत ने कहा कि घरेलू कामगारों के लिए अभी तक कोई कानून नहीं बनाया गया है। इनके लिए काम की शर्तें तय नहीं होना, काम की कुछ लिखा-पढी न होना व श्रम कानूनों के लाभ से बाहर होना, मजदूरी बहुत कम होना, मजदूरी का समय से न मिलना या मारा जाना तथा तय काम से अधिक व अतिरिक्त काम करवाना जैसी अनेक समस्याऐं है।
घरेलू कामगारों के काम के लम्बे घंटे, तय साप्ताहिक छुट्टी न होना तथा शारीरिक, मानसिक व यौनिक हिंसा के शिकार होने की अधिक सम्भावना रहती हैं इसलिए इनके लिए कानून व अलग से बोर्ड बनाये जाने की आवश्यकता हैं। पै्रस को सम्बोधित करते हुए हिमाद के अध्यक्ष डा0 डी0 एस0 पुण्डीर ने बताया कि भारत के अनेक राज्यों में घरेलू कामगारों के लिए नियम कानून बनाने की पहल हुई है जिनमें राजस्थान, आन्द्रप्रदेश उड़ीसा, केरल, झारखण्ड, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। देहरादून शहर में पिछले डेढ़ वर्षों से भी अधिक समय से जन जागरूकता एवं घरेलू कामगारों के पक्ष में सकारात्मक वातावरण निर्माण का कार्य किया गया जिसके तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, एनसीसी, एनएसएस के छात्र, आंगनबाडी केन्द्र, शिविल सोसायटी एवं अन्य पोटेन्सियल स्टेक होल्डर्स के मध्य इस विषय पर व्यापक वातावरण का श्रृजन किया गया, साथ ही उत्तराखण्ड में घरेलू कामगारों के लिए अलग से कानून व बोर्ड बनाये जाने की पैरवी हुई है इस सन्दर्भ में श्रम मंत्री उत्तराखण्ड सरकार एवं महामहिम राज्यपाल जी को संवन्धित दस्तावेज एवं ज्ञापन सौंपंे गये हैं ताकि कानून बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सके।
हिमाद एवं असंगठित कामगार अधिकार मंच के तत्वावधान में आयोजित पैस कान्फ्रैस में आयोजकों ने कहा कि शहरी भारत के अनौपचारिक क्षेत्रों में घरेलू कामगार खासकर महिला घरेलू कामगार एक नियमित रूप से बढ़ता वर्ग है। पिछले तीन दशकों में पुरूष कामगारों की तुलना में इनकी संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। यह दुखद पहलू है कि यह क्षेत्र तेजी से बढ़ा जरूर है पर घरेलू काम के अवमूल्यन की मानसिकता के कारण दूसरों के घरों में वेतनयुक्त काम को भी कोई मूल्य नहीं दिया जाता और इसको काम भी नहीं समझा जाता। घरेलू काम का यह सामाजिक अवमूल्यन इन कामगारों को सामाजिक ढांचे की सबसे निचली पायदान पर रखता है। विभिन्न अघ्ययन दर्शाते हैं कि घरेलू काम का प्रशासन काफी अनौपचारिक है। घरेलू कामगार समाज के सबसे गरीब व अशिक्षित वर्ग से आती हैं। अध्ययन यह भी बताते हैं कि हाशियेदार जातियों से सम्बन्ध रखने वाली महिलाऐं घरेलू कामगार वर्ग का बड़ा हिस्सा हैं। अपने मौजूदा स्वरूप में यह दो पार्टियों के बीच अनुबन्ध नहीं बल्कि एक अनौपचारिक संबन्ध है जिसमें समझौते कामगारों के मोल-तोल की क्षमता व काम देने वाले की अच्छाई पर आधारित होते हैं। इस काम का कार्यक्षेत्र घर होता है जो इस संबन्ध को एक औनपचारिक स्वभाव प्रदान करता है।
भारतीय परिपेक्ष्य में घरेलू कामगार हमारी अर्थ व्यवस्था में महती भूमिका निभाने के बावजूद अदृश्य व अण्डर रिर्पोटेड वर्ग है। सामान्य तौर पर घरेलू कामों को कम करके आंका जाता है और बड़ी संख्या में घरेलू कामगार अधिक काम के बोझ, कम मजदूरी से घिरी व अपर्याप्त या न के बराबर सामाजिक सुरक्षा से अच्छादित हैं। सामाजिक-आर्थिक जाति गणना के आकड़ों के अनुसार यह वर्ग ग्रामीण जनसंख्या का 25 प्रतिशत व शहरी जनसंख्या का 2 प्रतिषत है। इनकी वास्तविक संख्या 3 करोड़ से ऊपर हो सकती है।
असंगठित कामगार अधिकार मंच के अजय रावत ने कहा कि घरेलू कामगारों के लिए अभी तक कोई कानून नहीं बनाया गया है। इनके लिए काम की शर्तें तय नहीं होना, काम की कुछ लिखा-पढी न होना व श्रम कानूनों के लाभ से बाहर होना, मजदूरी बहुत कम होना, मजदूरी का समय से न मिलना या मारा जाना तथा तय काम से अधिक व अतिरिक्त काम करवाना जैसी अनेक समस्याऐं है।
घरेलू कामगारों के काम के लम्बे घंटे, तय साप्ताहिक छुट्टी न होना तथा शारीरिक, मानसिक व यौनिक हिंसा के शिकार होने की अधिक सम्भावना रहती हैं इसलिए इनके लिए कानून व अलग से बोर्ड बनाये जाने की आवश्यकता हैं। पै्रस को सम्बोधित करते हुए हिमाद के अध्यक्ष डा0 डी0 एस0 पुण्डीर ने बताया कि भारत के अनेक राज्यों में घरेलू कामगारों के लिए नियम कानून बनाने की पहल हुई है जिनमें राजस्थान, आन्द्रप्रदेश उड़ीसा, केरल, झारखण्ड, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। देहरादून शहर में पिछले डेढ़ वर्षों से भी अधिक समय से जन जागरूकता एवं घरेलू कामगारों के पक्ष में सकारात्मक वातावरण निर्माण का कार्य किया गया जिसके तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, एनसीसी, एनएसएस के छात्र, आंगनबाडी केन्द्र, शिविल सोसायटी एवं अन्य पोटेन्सियल स्टेक होल्डर्स के मध्य इस विषय पर व्यापक वातावरण का श्रृजन किया गया, साथ ही उत्तराखण्ड में घरेलू कामगारों के लिए अलग से कानून व बोर्ड बनाये जाने की पैरवी हुई है इस सन्दर्भ में श्रम मंत्री उत्तराखण्ड सरकार एवं महामहिम राज्यपाल जी को संवन्धित दस्तावेज एवं ज्ञापन सौंपंे गये हैं ताकि कानून बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सके।