Home उत्तराखण्ड अपनों से भेंट कर नन्दा स्वनूल देवी कैलाश के लिए विदा हुयी

अपनों से भेंट कर नन्दा स्वनूल देवी कैलाश के लिए विदा हुयी

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उर्गम घाटी की धियाण नन्दा स्वनूल देवी को भूमि क्षेत्रपाल घंटा कर्ण एवं भर्की भूमियाल के सानिध्य में मैनवाखाल व भनाई बुग्याल में जाकर भगवती नन्दा और स्वनूल देवी को उर्गम घाटी में अष्टमी की तिथि को बुलाया गया भगवती नन्दा नंदीकुड व स्वनूल देवी सोना शिखर से अपने मायके उर्गम घाटी अष्टमी तिथि को पहुंची नवमी को फ्यूलानारायण के कपाट बंद होने के बाद भर्की चोपता मंदिर में जागरों का गायन किया गया जिसमे सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है सुबह घंटा कर्ण भूमि क्षेत्रपाल उर्गम अपने छोटे भाई से मिलने भर्की गांव जाते है जहाँ देव मिलन होता है जागर दांकुडी गाये जाते है अन्त में दोनों भाई अपनी धियाण नन्दा स्वनूल को जागरों के माध्यम से नन्दीकुंण्ड और सोना शिखर के लिए विदा करते है कुछ पल मैतियों के सानिध्य में अपनी बहिन सखी सहेलियों से मिलकर भगवती नन्दा स्वनूल भींगी पलकों के साथ विदा होती है लोग अपनी धियाण को स्थानीय उत्पाद समुण देकर इस आशा के साथ विदा करते है कि जब उर्गम में चोपता मेला का आयोजन चैत वैशाख महीने में होगा हम तुम्हे जरूर बुलायेंगे घंटा कर्ण अपने छोटे भाई भर्की भूमियाल व अन्य देवी देवताओं को क्षेत्र की रक्षा दुख दरिद्र के लिए कहते है और भाई से भेंट कर अपने स्थान लौट जाते है इस मेले को भर्की दशमी मेला कहा जाता है

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