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गुरु-शिष्य अभियान: 38वें राष्ट्रीय खेल की अनोखी पहल
गुरु-शिष्य अभियान: 38वें राष्ट्रीय खेल की अनोखी पहल
38वें राष्ट्रीय खेल ने खेल और संस्कारों की परंपरा को ध्यान में रखते हुए "गुरु-शिष्य अभियान" की शुरुआत की है। इस अभियान का उद्देश्य खिलाड़ियों के साथ-साथ उनके प्रशिक्षकों के अतुलनीय योगदान को भी सामने लाना है। भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य का संबंध हमेशा से महत्त्वपूर्ण रहा है। गुरु अपने शिष्य को न केवल खेल में बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफल बनाने के लिए अथक प्रयास करता है।
गुरु-शिष्य के इस पवित्र रिश्ते और प्रशिक्षकों की कड़ी मेहनत को सराहने के लिए सरकार हर साल उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित करती है। यह पुरस्कार उनके अथक परिश्रम और खेल जगत में उनके योगदान को मान्यता देता है।
38वें राष्ट्रीय खेल का यह अभियान गुरु-शिष्य के इस अद्वितीय संबंध को सम्मानित करता है। जब शिष्य जीतता है, तो गुरु का सपना पूरा होता है। यही संदेश इस अभियान के माध्यम से खेल प्रेमियों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
38वें राष्ट्रीय खेल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमित कुमार सिन्हा ने गुरु शिष्य के रिश्ते पर बात करते हुए कहा की, “हाल...