देहरादून : जो वीडियो हम आपको दिखाने जा रहे हैं, वह देहरादून शहर की घनी आबादी का है। जहां बंदरों का झुंड न सिर्फ घर में घुस आया, बल्कि घर के मालिक पर भी झपटने को दौड़ पड़ा। यह व्यक्ति और कोई नहीं, बल्कि देहरादून के रायपुर स्थित सरकारी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ पीएस रावत हैं। बंदरों के झपटने की यह घटना उनके अभिनंदन एन्केल्व (जोगीवाला) स्थित घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई। यह वीडियो प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) डॉ धनंजय मोहन तक भी पहुंचा है। उन्होंने बेशक बंदरों के वन्यजीव संरक्षण की सूची से बाहर होने का हवाला दिया, लेकिन भरोसा भी दिलाया कि वह प्रभागीय वनाधिकारी देहरादून को निर्देशित कर मंकी कैचर से बंदरों पर लगाम कसने का प्रयास करेंगे।

 

दरअसल, बंदरों के वन्यजीव संरक्षण की सूची से बाहर हो जाने के बाद शहरी क्षेत्रों में आतंक मचा रहे बंदरों को संभालने की मुख्य जिम्मेदारी नगर निगम या संबंधित अन्य नगर निकाय पर आ गई है। लेकिन, देहरादून जैसे शहर में नगर निगम आतंक मचा रहे बंदरों पर लगाम कसने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है। वीडियो में भी देखा जा सकता है कि चिकित्सा अधीक्षक डॉ पीएस रावत बमुश्किल खुद को बचाने में सफल रहे। लेकिन, देहरादून में ही तमाम लोग स्ट्रीट डॉग्स की तरह बंदरों के काटने का शिकार भी हो रहा हैं।

रायपुर अस्पताल में भी रोजाना आ रहे 50 केस
रायपुर अस्पताल में ही कुत्तों के साथ ही बंदरों के काटने के भी 40 से 50 केस रोजाना सामने आ रहे हैं। देहरादून में हर साल एंटी रैबीज की वैक्सीनेशन में ही 04 से 05 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यदि सरकारी तंत्र ढंग से अपनी जिम्मेदारी निभाए तो इस राशि का प्रयोग अन्य कल्याणकारी कार्यों में किया जा सकता है। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ राजनीतिक माइलेज लेने के लिए ही नगर निकायों का विस्तार किया जाता है। क्योंकि, सुविधाओं के मोर्चे पर तो नए जुड़े क्षेत्रों के लोग याचना ही करते नजर आते हैं।

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