देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश किया गया। कानून बनने के बाद उत्तराखंड आज़ादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य हो जाएगा।

यूसीसी विधेयक के लिए बुलाये गये विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह विधेयक पेश किया। मुख्यमंत्री द्वारा विधेयक पेश किये जाने के सत्तापक्ष के विधायकों ने ‘‘भारत माता की जय, वंदेमातरम और जय श्रीराम’’ के नारे लगाये।
विधेयक पेश करने के बाद सीएम धामी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक वीडियो भी पोस्ट किया. उन्होंने लिखा- विधानसभा में ऐतिहासिकUCC संहिता विधेयक पेश किया।

चार खंडों में 740 पृष्ठों के इस मसौदे को सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री को सौंपा था। प्रदेश मंत्रिमंडल ने रविवार को यूसीसी मसौदे को स्वीकार करते हुए उसे विधेयक के रूप में सदन के पटल पर रखे जाने की मंजूरी दी थी। समान नागरिक संहिता पर ड्राफ़्ट में क़रीब 2 लाख 33 हज़ार लोगों ने अपने विचार दिए हैं, इसे तैयार करने वाली कमेटी ने कुल 72 बैठकें की थीं। ख़बरों के मुताबिकए ड्राफ़्ट में 400 से ज़्यादा धाराएं हैं।

यूसीसी के तहत सभी धर्मों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होगी।
पुरुष-महिला को तलाक देने के समान अधिकार मिलेगा।
लिव इन रिलेशनशिप डिक्लेयर करना जरूरी है।
लिव इन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर 6 माह की सजा होगी।
लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में समान अधिकार है।
महिला के दोबारा विवाह में कोई शर्त नहीं है।
अनुसूचित जनजाति दायरे से बाहर हैं।
बहु विवाह पर रोक, पति या पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी नहीं हो सकती है।
शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी बिना रजिस्ट्रेशन सुविधा नहीं है।
उत्तराधिकार में लड़कियों को बराबर का हक मिलेगा।

यूसीसी लागू तो क्या होगा?
हर धर्म में शादी, तलाक के लिए एक ही कानून होंगे।
जो कानून हिंदुओं के लिए, वही दूसरों के लिए भी हैं।
बिना तलाक एक से ज्यादा शादी नहीं कर पाएंगे।
मुसलमानों को 4 शादी करने की छूट नहीं रहेगी।

यूसीसी से क्या नहीं बदलेगा?
धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
धार्मिक रीति-रिवाज पर असर नहीं है।
ऐसा नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे।
खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर प्रभाव नहीं है

UCC लागू होने के पश्चात क्या होंगे नियम______*

१. पुरुष और महिला के बीच विवाह तभी अनुबंध किया जा कता है जब विवाह के समय दोनों पक्षकारों में ना तो वर की कोई जीवित पत्नी हो और ना ही वधू का कोई जीवित पति हो।

२. विवाह के समय पुरुष की आयु 21 वर्ष पूरी हो और स्त्री की आयु 18 वर्ष पूरी हो

पति या पत्नी में से किसी ने दूसरे के सहचार्य से किसी युक्ति युक्त प्रति हेतु के बिना प्रत्यारित कर लिया हो तब पीड़ित पक्ष दांपत्य अधिकारों के प्रतिस्थापन के लिए न्यायालय में याचिका द्वारा आवेदन कर सकेगा।

विवाह का कोई भी पक्षकार इस संगीता के प्रारंभ होने के बाद न्यायिक पृथक्करण की प्रार्थना करते हुए याचिका प्रस्तुत कर सकेगा

विवाह निम्नलिखित आधारों में किसी भी न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत किए जाने पर शून्य अवर्णीय होगा अगर प्रत्यार्थी की नपुंसकता या जानबूझकर प्रतिषेध के कारण विवाह उत्तर संभोग नहीं हुआ है या याचिका करता की सहमति बलपूर्वक प्रकीर्णन या धोखा घड़ी से प्राप्त की गई हो या पत्नी विवाह के समय पति के अलावा किसी अन्य पुरुष से गर्भवती थी या पति ने विवाह के समय पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला को गर्भवती किया था।

किसी भी पक्षकार द्वारा प्रस्तुत याचिका पर विवाह विच्छेद के आज्ञाक्ति द्वारा सिर्फ इस आधार पर विघटित किया जा सकेगा कि दूसरे पक्षकार ने विवाह के पश्चात याचिका करता से भिन्न किसी व्यक्ति के साथ संभोग किया हो या दूसरे पक्षकार ने विवाह के बाद याचिका करता के साथ कुर्ता का व्यवहार किया हो।

समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड)

• हमारे संविधान में लैंगिक न्याय एवं समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता एवं अन्य अधिकार में सर्वोपरि रखा गया है।

यही कारण है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में UCC का उल्लेख किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी 1985, 1995, 2003, 2019 में बार-बार सरकार को UCC के लिए निर्देश दिए।

• अनुच्छेद 44 कहता है, “राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।”

• समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो।

• समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।

• यूनिफार्म सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।

• भिन्न भिन्न नागरिक संहिता होने के कारण भारतीय समाज में बहुत सारी विषमताएं व्याप्त हैं।

• समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है।

• यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी।

• वर्तमान में देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं।

• फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।

यूसीसी के क्या लाभ हैं?

राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षताः

• यूसीसी सभी नागरिकों के बीच एक समान पहचान और अपनेपन की भावना पैदा करके राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगा।

• इससे विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के कारण उत्पन्न होने वाले सांप्रदायिक और सांप्रदायिक विवादों में भी कमी आएगी।

• यह सभी के लिए समानता, भाईचारा और सम्मान के संवैधानिक मूल्यों को कायम रखेगा।

लैंगिक न्याय और समानताः

• यूसीसी विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के तहत महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न को दूर करके लैंगिक न्याय और समानता सुनिश्चित करेगा।

• यह विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने, भरण-पोषण आदि के मामलों में महिलाओं को समान अधिकार और दर्जा प्रदान करेगा।

• यह महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाली पितृसत्तात्मक और प्रतिगामी प्रथाओं को चुनौती देने के लिए भी सशक्त बनाएगा।

कानूनी प्रणाली का सरलीकरण और युक्तिकरणः

• यूसीसी कई व्यक्तिगत कानूनों की जटिलताओं और विरोधाभासों को दूर करके कानूनी प्रणाली को सरल और तर्कसंगत बनाएगा।

• यह विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के कारण उत्पन्न होने वाली विसंगतियों और खामियों को दूर करके नागरिक और आपराधिक कानूनों में सामंजस्य स्थापित करेगा।

• यह कानून को आम लोगों के लिए अधिक सुलभ और समझने योग्य बना देगा।

पुरानी और प्रतिगामी प्रथाओं का आधुनिकीकरण और सुधारः

• यूसीसी कुछ व्यक्तिगत कानूनों में प्रचलित पुरानी और प्रतिगामी प्रथाओं का आधुनिकीकरण और सुधार करेगा।

• यह उन प्रथाओं को खत्म कर देगा जो भारत के संविधान में निहित मानवाधिकारों और मूल्यों के खिलाफ हैं, जैसे तीन तलाक, बहुविवाह, बाल विवाह आदि।

• यह बदलती सामाजिक वास्तविकताओं और लोगों की आकांक्षाओं को भी समायोजित करेगा।

क्या है हिन्दू पर्सनल लॉ :

• भारत में हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लाया गया। देश में इसके विरोध के बाद इस बिल क चार हिस्सों में बांट दिया गया था।

• इसे हिन्दू मैरिज एक्ट, हिन्दू सक्सेशन एक्ट, हिन्दू एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट और हिन्दू माइनोि एंड गार्जियनशिप एक्ट में बांट दिया था।

• इस कानून ने महिलाओं को सीधे तौर पर सशक्त बनाया। इनके तहत महिलाओं को पैतृक और पति की संपत्ति में अधिकार मिलता है।

• इसके अलावा अलग-अलग जातियों के लोगों को एक-दूसरे से शादी करने का अधिकार है ले कोई व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड :

• देश के मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड है। इसके लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम्म पुरुष अपनी पत्नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है।

• हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक के और भी तरीके दिए गए हैं, लेकिन उनमें से तीन बा तलाक भी एक प्रकार का तलाक माना गया है, जिसे कुछ मुस्लिम विद्वान शरीयत के खिलाफ बताते हैं।

• तलाक के बाद अगर दोनों फिर से शादी करना चाहते हैं तो महिला को पहले किसी और पुरुष साथ शादी रचानी होगी, इसे हलाला कहा जाता है।

• उससे तलाक लेने के बाद ही वो पहले पति से फिर शादी कर सकती है। इस लॉ में महिलाओ तलाक के बाद पति से किसी तरह के गुजारे भत्ते या संपत्ति पर अधिकार नहीं दिया गया है ब मेहर अदायगी का नियम है।

• तलाक लेने के बाद मुस्लिम पुरुष तुरंत शादी कर सकता है जबकि महिला को इद्दत के निश्थि गुज़ारने पड़ते हैं।