बंड नंदा की छंतोली अगले पडाव गौणा के लिए रवाना.
बंड नंदा की छंतोली की लोकजात नरेला बुग्याल में 25 अगस्त को सम्पन्न होगी
बंड भूमियाल के पौराणिक मंदिर में बंड पट्टी के लोगों नें लोकगीतों और जागरों गाकर किया विदा..
फफक कर रो पडी ध्याणियां..
मेरी मेत की ध्याणी तेरू बाटू हेरदु रोलू..
जशीलि ध्याण तू जशीलि वे रेई..
अपणा मैत्यों पर छत्र-छाया बणाई रेई…
जैसे पारम्परिक लोकगीतों और जागरों के जरिए बंड पट्टी के ग्रामीणों ने बंड नंदा की छंतोली को अगले पडाव के लिए विदा किया। नंदा को विदा करते समय महिलाओं और ध्याणियों की आंखों से अवरिल अश्रुओं की धारा बहनें लगी। कई ध्याणी तो फफक कर रोने लगे। आज बंड की छंतोली का रात्रि विश्राम गौणा गांव होगा कल गौणा से पंचगंगा और सप्तमी के दिन छंतोली पंचगंगा से नरेला बुग्याल में पूजा अर्चना कर लोकजात संपन्न होगी। इस अवसर पर कुरूड नंदा की छंतोली के साथ आये पुजारी प्रकाश गौड, बंड मंदिर समिति के अध्यक्ष पूरण सिंह चौहान, बंड विकास संगठन के, पूर्व अध्यक्ष अतुल शाह, गेदाणू मंदिर के पश्वा जगत सिंह नेगी, बंड युवा संगठन के अध्यक्ष अजय भंडारी, प्रदीप नेगी पूर्व जिला पंचायत सदस्य देवेंद्र सिंह नेगी, नरेंद्र सिंह राणा, हरेंद्र सिंह पवार, मदन सिंह नेगी, राजेंद्र प्रसाद गौड़, मोतीराम गॉड, कमलेश गॉड, प्रकाश गॉड, नवीन सती, राजेंद्र सिंह फरस्वानसहित अन्य लोग उपस्थित रहे। इस दौरान सरकार द्वारा कोविड-19 हेतु जारी दिशानिर्देशों के अनुसार सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए सारी पारम्परिक प्रक्रियाओं को सम्पन्न किया गया।
बंड नंदा की छंतोली की लोकजात उच्च हिमालयी नरेला बुग्याल में होती है संपन्न।
लोकजात में कुरूड से चली कुरूड नंदा बंड भूमियाल की रिंगाल की छंतोली बंड पट्टी के कौडिया, सिरकोट, दिगोली, लुंहा, महरगांव, बाटुला, मायापुर, गडोरा, अगथल्ला, रैतोली, नौरख, पीपलकोटी, सल्ला, कम्यार होते हुये बंड भूमियाल की थाती किरूली गांव पहुंचती है। सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में नंदा के जयकारों और जागरों के साथ बंड भूमियाल का थान थिरक उठता है और चांचणी, झुमेलो की सुमधुर लहरियों से अलौकिक हो उठता है नंदा का लोक। रात भर बंड भूमियाल की थाती में लोकोत्सव का माहौल रहता है। अगले दिन बंड पट्टी के सैकड़ों ग्रामीणों माँ नंदा को रोते विलखते विदा करते हैं, साथ ही मां नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी भेंट करते हैं। महिलाएँ नंदा के पौराणिक जागर गाकर नंदा को विदा करती हैं। जिसके बाद कुरूड नंदा बंड भूमियाल की छंतोली सहित अन्य छंतोली किरूली गांव के बंड भूमियाल मंदिर से पंछूला नामक स्थान पर कुणजाख देवता से आज्ञा लेकर विनाकधार, बौंधार, भनाई होते हुये अगले पड़ाव गौणा गाँव के लिए प्रस्थान करती है। गौणा गाँव से अगले दिन छंतोली तडाग ताल, गौणा डांडा, रामणी बुग्याल, चेचनिया विनायक होते हुये रात्रि विश्राम को पंचगंगा पहुंचती है। जिसके बाद अगले दिन छंतोली पंचगंगा से नरेला बुग्याल पहुंचती है। बंड मंदिर समिति के अध्यक्ष पूरण सिंह चौहान कहते हैं कि नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी के दिन छंतोली की पूजा अर्चना कर, श्रद्धालु अपने साथ लाये नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी अर्पित करते हैं। इस दौरान सामने दिखाई दे रहे त्रिशुली और नंदा घुंघुटी पर्वत की पूजा भी करते हैं। और नंदा को कैलाश की ओर विदा कर लोकजात वापसी का रास्ता पकडती है।