उत्तराखंड निकाय चुनाव में छह पूर्व मुख्यमंत्री मतदान नहीं कर पाए, जानिए क्या रही वजह
उत्तराखंड निकाय चुनाव में छह पूर्व मुख्यमंत्री मतदान नहीं कर पाए। सिर्फ एक पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र रावत ही निकाय चुनाव के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग कर सके। निकाय चुनाव के मतदान के दिन गुरुवार को पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत का मतदाता सूची से जुड़ा मामला सुर्खियों में रहा। सोशल मीडिया में भी यह चर्चाओं का विषय रहा। जब तक मतदाता सूची में उनके नाम की पुष्टि हो पाई, तब तक मतदान अवधि बीत चुकी थी। इससे वे वोट से वंचित हो गए।
लेकिन ऐसा नहीं कि हरीश वोट न देने वाले अकेले पूर्व मुख्यमंत्री हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भी इस लिस्ट में शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का पिथौरागढ़ में वोट है, पर मतदाता सूची में गलत नाम होने की वजह से मतदान नहीं कर पाए। पूर्व सीएम मेजर जनरल (रिटायर) बीसी खंडूड़ी अस्वस्थ हैं और दून के एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज चल रहा है। पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार में व्यस्त हैं। पूर्व सीएम विजय बहुगुणा अस्वस्थ हैं और दिल्ली में हैं। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत ने डिफेंस कॉलोनी बूथ में मतदान किया।
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ रावत निकाय क्षेत्र के वोटर नहीं हैं, इस कारण उनका निकाय चुनाव में मताधिकार नहीं है। धामी का वोट ग्राम पंचायत नगला तराई (खटीमा) में है, जबकि पूर्व सीएम तीरथ रावत का वोट ग्राम सभा सीरो (पौड़ी) में है।
पहली बार नगर निगम बनने के बाद हो रहे मतदान में महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी निकाय चुनाव के लिए मतदान नहीं कर सके। मतदाता सूची में नाम गलत होने से उन्हें मताधिकार से वंचित रहना पड़ा। गुरुवार को पिथौरागढ़ नगर निगम के लिए मतदान में भाग लेने को पूर्व राज्यपाल कोश्यारी यहां आए हुए हैं। उन्होंने बताया, दो दिन पहले उन्होंने मतदाता सूची का अवलोकन किया, जिसमें नाम गलत प्रकाशित हुआ थ, जबकि पिता का नाम सही दर्ज था।
बता दें कि वे राज्य गठन के बाद से हमेशा विधानसभा-लोकसभा के साथ नगर निकाय चुनावों में यहां आकर मतदान करते रहे हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि वे पिथौरागढ़ में मौजूद रहे और मतदाता सूची में नाम गलत प्रकाशित होने के कारण उनको मताधिकार से वंचित होना पड़ा