सतपाल महाराज का आवास घरेंगे 9 सितंबर को
महाराज की बयान से नाराज है संगठन
देहरादून।
उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन पंचायती राज मंत्री सतपाल महाराज के बयानों से खासा नाराज है। संगठन ने 7 सितंबर तक बैठक नहीं बुलाने पर 9 सितंबर को पंचायती राज मंत्री के सरकारी आवास का घेराव करने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने मंत्री को 2 वर्ष का कार्यकाल बढ़ाए जाने की की मांग के पक्ष में रिपोर्ट तैयार करने के लिए मुख्य भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी थी, महाराज ने आज तक अपनी भूमिका तो नहीं निभाई। अब अनुच्छेद 243 का हवाला देकर सरकार के सम्मुख मुश्किलें खड़ी कर रहे है।
उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन के प्रदेश संयोजक जगत मर्तोलिया, ग्राम प्रधान संगठन के प्रदेश अध्यक्ष भास्कर सम्मल, क्षेत्र प्रमुख संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ दर्शन सिंह दानू, जिला पंचायत सदस्य संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्ट, जिला पंचायत सदस्य संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सोना सजवान ने बताया कि 31 जुलाई 2024 को जब मुख्यमंत्री के साथ विभागीय मंत्री की उपस्थिति में एक माह का समझौता हुआ था।
उस समय मुख्यमंत्री ने विभागीय मंत्री को अपने व्यस्त रहने की बात कहते हुए कहा था कि वह इस कार्य में मुख्य भूमिका निभाए।
संगठन के एक प्रतिनिधि मंडल ने भी 1 अगस्त को विभागीय मंत्री से मिलकर सचि,व अपर सचिव तथा निदेशक पंचायती राज के साथ संगठन की बैठक कराए जाने का अनुरोध किया था। विभागीय मंत्री ने आश्वासन तो दिया लेकिन आज तक बैठक नहीं कराई।
महाधिवक्ता उत्तराखंड को सरकार की मंशा बताने की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री ने विभागीय मंत्री को सौपी थी।
विभागीय मंत्री ने कोई कार्य नहीं किया।
जो विभागीय मंत्री ने सबसे पहले मुख्य सचिव को कार्यकाल बढ़ाने के लिए पत्र लिख था। आज वहीं विभागीय मंत्री इस तरह के कच्चे ज्ञान वाले बयान दे रहे है।
उन्होंने कहा कि 9 सितंबर को विभागीय मंत्री का सरकारी आवास का घेराव किया जाएगा।
7 सितंबर से पहले अगर विभागीय मंत्री ने उक्त अधिकारियों के साथ संगठन की बैठक आयोजित कर दी। तभी घेराव का कार्यक्रम वापस लिया जाएगा।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि विभागीय मंत्री केवल बयान देते है। कुछ काम नहीं करते है।
संगठन के प्रदेश संयोजक जगत मर्तोलिया ने कहा कि विभागीय मंत्री को जब यह पता नहीं है कि अनुच्छेद 243 के बाद भी झारखंड में अनुच्छेद 213 का सहारा लेकर कार्यकाल बढ़ाया गया है।
उत्तराखंड में भी 1996 में गठित पंचायत का कार्यकाल 2002 में अनुच्छेद 213 का सहारा लेकर बढ़ाया गया है।
दोनों कार्यकाल बढ़ोत्तरी में खास बात यह है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को समिति बनाकर ही प्रशासक के रूप में कार्य करने का अवसर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में बिना होमवर्क किए मंत्री कम कर रहे है। विभागीय मंत्री का यह बयान इस बात का पुख्ता प्रमाण है।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि विभागीय मंत्री केवल आंदोलन त्रिस्तरीय पंचायतों के आंदोलित सदस्यों के मनोबल तोड़ने का काम कर रहे है।
विभागीय मंत्री मुख्य सचिव को पत्र कार्यकाल बढ़ाए जाने के लिए एक ओर पत्र लिखते है और जो भी त्रिस्तरीय पंचायत के सदस्य उनसे मिलता है तो उन्हें कहते हैं कि कार्यकाल नहीं बढ़ेगा।
उन्होंने फिर दोहराया कि महाधिवक्ता उत्तराखंड सहित सरकार के जितने भी कानून के विद्वान है। संगठन
उनके साथ खुली बहस करना चाहता हैं। इसके लिए भी सरकार को डेट तय करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम की सूरत में वापस नहीं लौटेंगे। उत्तराखंड में वह आंदोलन होगा जिसकी उत्तराखंड सरकार ने कल्पना नहीं की है।
इसलिए सरकार के मुखिया को विभागीय मंत्री को अध्ययन के लिए अवकाश में भेज देना चाहिए।