नैनीताल:
हाई कोर्ट ने टिहरी गढ़वाल में पुलिस हिरासत में मौत मामले छह पुलिसकर्मियों सहित दो डाक्टरों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने सितंबर में इस मामले में टिहरी के जिला न्यायाधीश योगेश कुमार गुप्ता के आदेश पर भी रोक लगा दी है। इस आदेश में छह पुलिसकर्मियों और दो डाक्टरों को गैर इरादतन हत्या व साक्ष्य नष्ट करने के अपराध में समन जारी करने के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट विनोद कुमार बर्मन के निर्देश को रद कर दिया गया था। कोर्ट ने राज्य सरकार को शपथपत्र दाखिल करने का भी निर्देश दिया।
घनसाली निवासी 38 वर्षीय स्वरूप सिंह की 21 मई 2011 को एक महिला से बहस के बाद पुलिस हिरासत में लिए जाने के पर संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई थी। इसके बाद उनके भाई मोर सिंह ने छह पुलिसकर्मियों और तीन डाक्टरों के विरुद्ध हत्या और सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की। कुछ साल पहले एक डाक्टर का निधन हो गया है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के अनुसार, इस मामले में न्यायालय का मानना है कि पुलिस को लाभ पहुंचाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट से छेड़छाड़ की गई थी। यहां तक कि पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी भी नहीं की गई थी। जो संदिग्ध हिरासत में मौत के मामले में अनिवार्य है। हाई कोर्ट ने इस मामले में आदेश की एक प्रति सीबीआइ को देने का भी निर्देश दिया। न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ मामले में अगली सुनवाई 21 दिसंबर को करेगी।
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सीजेएम कोर्ट ने जारी किए थे समन, जिला कोर्ट ने बताया गलत
सीजेएम कोर्ट में दायर शिकायत में मोर सिंह ने कहा था कि उसका भाई बाजार से गुजर रहा था और भारी ट्रैफिक जाम था। तभी उसकी कार में बैठी एक महिला से बहस हो गई। इसके बाद होमगार्ड सोहन लाल और वहां गश्त कर रहे पुलिसकर्मी उसे चौकी ले गए और बेरहमी से पीटा। इसके बाद पुलिसकर्मी उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
चार दिन बाद 25 मई को नई टिहरी पुलिस स्टेशन में पुलिस वालों के विरुद्ध हत्या की प्राथमिकी लिखाई। दस्तावेजों की समीक्षा के बाद सीजेएम कोर्ट ने कहा, “पुलिस हिरासत में किसी व्यक्ति के साथ हुई क्रूरता के संबंध में कोई सबूत ढूंढना असंभव है। सीजेएम कोर्ट ने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम में शामिल डाक्टरों ने जानबूझकर वीडियोग्राफी कराने के नियम का पालन नहीं किया। पुलिस को लाभ पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण मेडिकल सबूत भी नष्ट कर दिए।
सीजेएम न्यायालय के आदेश को जिला न्यायाधीश की अदालत में चुनौती दी गई। जिन्होंने आदेश को यह कहते हुए रद कर दिया कि अगर सीजेएम ने जांच में कोई विसंगति पाई होती, तो एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा नए सिरे से जांच की आवश्यकता होती। लेकिन सीजेएम कोर्ट ने ऐसा करने के बजाय शिकायत को केस मानकर पुलिसकर्मियों और डाक्टरों को समन जारी कर गलती कर दी।