पंच केदारों में प्रसिद्ध कल्पेश्वर नाथ धाम जहां कोरोना संक्रमण के बाद यहां भारी मात्रा में शिव भक्त पहुंचे हैं शिवरात्रि के पावन पर्व पर यहां लगभग 3000 से भी अधिक श्रद्धालु दोपहर तक भगवान भोले के दर्शन कर चुके हैं बताया जा रहा है कि आज शिवरात्रि के पावन पर्व पर लगभग 5000 श्रद्धालु देर शाम तक भोले भंडारी के दर्शन करेंगे शिवरात्रि के पावन पर्व पर पंच केदारों के कपाट बंद होते हैं लेकिन कल्पेश्वर नाथ धाम के कपाट 12 महीनों तक शिव भक्तों के लिए खुले हुए होते हैं कल्पेश्वर नाथ धाम में भगवान भोले शंकर की जटाओं की पूजा की जाती है यहां भोले भंडारी की जटा से भगवान शिव के शिवलिंग में पानी की बूंदे टपकती रहती हैं।
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान कल्पेश्वर नाथ धाम में ही देवता गणों की सभा आयोजित हुई थी यहां देवता गणों की बैठक में समुद्र मंथन का मुखिया भगवान शिव को बनाया गया । उसके बाद शिव भोले भंडारी ने समुद्र मंथन के दौरान निकले विषैले पदार्थ को ग्रहण करने का देवताओं को वचन दिया और जब इस जहरीले विश को भगवान भोले शंकर ने धरण किया तभी से भगवान शिव का नाम नीलकंठ भी पढ़ा
कल्पेश्वर नाथ धाम में ही इंद्र गुफा है वायु देव और इंद्र की सभा सबसे पहले कल्पेश्वर नाथ में ही आयोजित हुई थी जहां से समुद्र मंथन की रणनीति देवताओं ने बनाई थी
सरकार की अनदेखी कल्पेश्वर नाथ धाम में साफ दिखाई दे रही है व्यापक प्रचार-प्रसार ना होने की वजह से यहां स्थानीय श्रद्धालु को अवश्य पहुंचते हैं लेकिन बाहरी राज्यों से श्रद्धालु नहीं पहुंचते पाते हैं क्योंकि उत्तराखंड के मानचित्र पर अभी भी कल्पेश्वर नाथ की पहचान अन्य धामों की भांति नहीं हो पाई है हालांकि यहां पहुंचने के साधन बहुत ही ज्यादा सुलभ है कल्पेश्वर मंदिर के ठीक सामने आप वाहन से पहुच सकते हैं लेकिन उसके बाद भी यहां पर व्यापक प्रचार-प्रसार की खासी कमी देखी जाती है
कल्पेश्वर धाम शिव भगवान का एक अनोखा धाम है यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना ओं को पूर्ण होता हुआ मानते हैं जो श्रद्धालु यहां पहली बार आए हैं वह भगवान के इस अनोखे मंदिर को देखकर खुशी महसूस करते हैं हर कोई यहां भगवान भोले के एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से पहुंचता है कई लोग तो बारंबार यहां पहुंच कर अपने दुख दर्द और कष्टों को दूर करने की प्रार्थना भगवान शिव से करते हैं