माणा। नीति माणा घाटी से कैलाश मानसरोवर यात्रा की मांग फिर से तेज हो गई है 1962 से पूर्व इसी घाटी से कैलाश मानसरोवर की यात्रा होती थी इसके अलावा भारत तिब्बत व्यापार का रास्ता भी इसी घाटी से था।

वहीं अब ग्रामीणों ने एक बार फिर घाटी के विकास के हीत मे यह यात्रा शुरू करने की मांग की है लोगों ने पीएम को ज्ञापन भेजकर इस रूट पर यात्रा शुरू करने की मांग की है 1962 मे भारत चीन युद्ध से पहले इसी घाटी से यात्रा होती थी यही नहीं 1962 के भारत चीन युद्ध से पहले भारत तिब्बत व्यापार भी इसी मार्ग से होता था भारत के लोग नीति घाटी के बड़ाहोती, दापा मंड़ी तिब्बत घड़ टोक नामक स्थान से व्यापार करते थे जबकि माणा घाटी के लोग चपरांग और थोलिग मठ मे व्यापार करते थे एक बात यह भी गवाह है कि 22 जून 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थिया विसर्जित करने के लिए इसी मार्ग से कैलाश मानसरोवर गई थी पुस्तक हिमालयन गजेटियर मे लिखा गया है कि 22 जून 1948 को दिल्ली के व्यवसायी रूप बंसत सहित तीन लोग नीति घाटी पहुचे थे 24 जून को उन्होने कैलाश मानसरोवर में महात्मा गांधी की अस्थिया विसर्जित की यही नहीं वर्तमान समय की बात की जाए तो इस यात्रा के रुट खूलने से जोशीमठ मे ही नहीं बल्कि पूरे जनपद चमोली मे व्यापार भी बढ सकता है और नीति घाटी से हो रहा पलायन भी रुक सकता है पैनखंड़ा संघर्ष समिति के अध्यक्ष रमेश सती ने कहा कि व्यापार की दृष्टि से नीति पास से कैलाश मानसरोवर यात्रा अवश्य होनी चाहिए साथ ही भारत चीन के आपसी संबंध भी मजबूत हो सकते है बताया कि कैलाश मानसरोवर यात्रा दिल्ली से नीति घाटी मार्ग से बहुत सरल है इसलिए हम प्रधानमंत्री मोदी जी से निवेदन करते है कि इस और प्रयास कर यात्रा को नीति घाटी से आरम्भ की जाए।

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