अवैध तौर पर दिये पट्टे की जमीन भी वापस ले सरकार : विकेश नेगी

– देहरादून के फतेहपुर टांडा में नदी और बंजर भूमि की जमीन दे दी पट्टे पर

– हिमालयी आयुर्वेदिक योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान को पट्टे पर जमीन देना नियम विरुद्ध

देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इन दिनों प्रदेश में सरकारी जमीनों को वापस लेने का अभियान चला रहे हैं। उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि गैर कानूनी ढग से कब्जाई गयी सरकारी भूमि को वापस लें। इस अभियान के तहत ही आरटीआई एक्टिविस्ट ने देहरादून के जिलाधिकारी को शिकायत की है कि फतेहपुर टांडा गांव में हिमालयी आयुर्वेदिक योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान को आयुर्वेदिक संस्थान खोलने के लिए पट्टे पर दी गयी जमीन नियमों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इस जमीन पर जारी पट्टे को निरस्त कर दिया जाना चाहिए।

आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी के मुताबिक फतेहपुर टांका परवादून, तहसील  देहरादून की खाता संख्या 00825 के तहत दर्ज नदी एवं बंजर भूमि पर अवैध पट्टों दिये गये हैं। उनके मुताबिक इस भूमि के संबंध में दिए गए आदेश एवं शासनादेश स्पष्ट रूप से उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 की धारा 132 और भारतीय संविधान के अनुच्छेदों के उल्लंघन का संकेत देते हैं।

एडवोकेट विकेश नेगी ने बताया कि खतौनी में उल्लेखित भूमि शासनादेश स० 253/18(1)/2005 दिनांक 22-07-2005 के अनुसार हिमालयी आयुर्वेदिक योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान को आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय हेतु ग्राम फतेहपुर टांडा तहसील ऋषिकेश जिला देहरादून के खाता खतौनी 825 में कुल 19.9200 हेक्टेयर भूमि को पट्टे पर दिया गया है।यह भूमि नदी और बंजर श्रेणी की है, जिस पर किसी भी प्रकार के व्यावसायिक या निजी स्वार्थ हेतु पट्टा देना पूरी तरह से अवैध है।

एडवोकेश नेगी का तर्क है कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 की धारा 132 के अनुसार, नदी, चारागाह, बंजर भूमि और अन्य सार्वजनिक उपयोग की भूमि पर पट्टा जारी करना अवैध है। इस अधिनियम का उद्देश्य स्पष्ट रूप से सामुदायिक भूमि को संरक्षित करना और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना है। धारा 132 का यह प्रावधान विशेष रूप से इस प्रकार की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त रखने के लिए लागू किया गया है ताकि पर्यावरण का संरक्षण हो और समाज के सामूहिक हितों को सुरक्षित रखा जा सके।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 21 जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के अंतर्गत पर्यावरण का अधिकार भी शामिल है। नदी और बंजर भूमि पर इस प्रकार के अतिक्रमण से स्थानीय नागरिकों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने वर्ष 1996 में दिये गये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि बंजर और नदी श्रेणी की भूमि को संरक्षित रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, और इस पर किए गए किसी भी अतिक्रमण को अवैध ठहराया गया है। उनका कहना है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी नदियों को व्यक्ति माना है। ऐसे में नदी तट पर अतिक्रमण गैरकानूनी है।

एडवोकेट विकेश नेगी ने जिला अधिकारी से मांग की है कि अवैध पट्टे और भूमि आवंटन को तुरंत रद्द किया जाए और इस भूमि को लिए संरक्षित रखा जाए। इसके अलावा हिमालयी आयुर्वेदिक योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान द्वारा इस भूमि पर किए गए सभी निर्माण कार्यों को हटाने का आदेश दिया जाए। उन्होंने इस मामले की एक स्वतंत्र जांच समिति के माध्यम से जांच कराई जाए और उत्तरदायी अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।