इसरो के जियो पोर्टल से रखी जा रही वनाग्नि की घटनाओं पर नजर, ऐसे हो रहा कामवर्तमान तकनीकी युग में विभाग ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित जियो पोर्टल भुवन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जो जंगल की आग के अलावा चक्रवात, सूखा, भूकंप, बाढ़ व भूस्खलन जैसी घटनाओं की स्थिति के बारे में सटीक जानकारी देने में समक्ष है।एक समय था जब वन विभाग वनाग्नि की सूचनाओं के लिए पूरी तरह से क्रू स्टेशनों पर निर्भर था, लेकिन अब वनाग्नि की घटनाओं की निगरानी के लिए जियो पोर्टल की मदद भी ली जा रही है।

उत्तरकाशी वन प्रभाग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित जियो पाेर्टल भुवन की मदद से जंगल की आग पर नजर रख रहा है। सेटेलाइट डेटा के जरिए यह जियो पोर्टल वनाग्नि की घटनाओं की सटीक जानकारी देने में सक्षम है।उत्तरकाशी वन प्रभाग अंतर्गत छह रेंज हैं। इनमें बाड़ाहाट, मुखेम, डुंडा, धरासू, टकनौर व गंगोत्री रेंज शामिल हैं। 15 फरवरी से 15 जून तक चलने वाले फायर सीजन में यहां बड़े पैमाने पर वनाग्नि की घटनाएं होती है। पूर्व में विभाग वनाग्नि की सूचना के लिए क्रू स्टेशनों पर निर्भर रहता थावर्तमान तकनीकी युग में विभाग ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित जियो पोर्टल भुवन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जो जंगल की आग के अलावा चक्रवात, सूखा, भूकंप, बाढ़ व भूस्खलन जैसी घटनाओं की स्थिति के बारे में सटीक जानकारी देने में समक्ष है। मास्टर कंट्रोल रूम में तैनात वन रक्षक जैसे ही जियो पोर्टल भुवन ओपन कर फॉरेस्ट फायर पर क्लिक करता है, तो नियर रियल टाइम फॉरेेस्ट फायर की घटनाएं गुलाबी डॉट से भारतीय मानचित्र पर अंकित हो जाती है।
जियो पोर्टल भुवन के बारे में जानिए

इसे इसरो द्वारा विकसित गूगल मैप्स का भारतीय संस्करण भी कहा जाता है। यह सॉफ़्टवेयर एप्लिकेशन उपयोगकर्ताओं को पृथ्वी की सतह का 2डी/3डी प्रतिनिधित्व देखने की अनुमति देता है। पोर्टल को विशेष रूप से भारत को देखने के लिए तैयार किया गया है, जो क्षेत्र में उच्चतम रिज़ॉल्यूशन प्रदान करता है। यह अन्य वर्चुअल ग्लोब सॉफ़्टवेयर की तुलना में एक मीटर तक के स्थानिक रिज़ॉल्यूशन के साथ भारतीय स्थानों की विस्तृत कल्पना प्रदान करता है।

वनाग्नि घटनाओं की निगरानी के लिए तकनीकी की मदद भी ली जा रही है। इसरो का जियो पोर्टल भुवन इसमें काफी मददगार है। हालांकि वर्तमान में रुक-रुककर बारिश का सिलसिला जारी रहने से वनाग्नि की घटनाओं में कमी आई है।
– डीपी बलूनी, डीएफओ, उत्तरकाशी वन प्रभाग