जोशीमठ से नितिन सेमवाल

30 अप्रैल को भगवान बद्रीविशाल के कपाट ग्रीष्म काल के लिए खोल दिए जाएंगे लेकिन अभी तक भगवान बद्रीविशाल के मुख्य पुजारी रावल जी अपने मूल स्थान से बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना नहीं हुए हैं जिससे हक हकूक धारी और स्थानीय लोगों में संशय बना हुआ है ।शंकराचार्य द्वारा भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने और बंद होने की प्रक्रिया के साथ-साथ भगवान बद्रीविशाल के दिव्या श्रृंगार एवं पूजा का दायित्व दक्षिण भारत के नमबुद्री ब्राह्मणों को सौंपा गया है। लेकिन कोरोनावायरस के चलते रावल जी अभी तक जोशीमठ नहीं पहुंचे है जिससे के बाद स्थानीय हक हकूक धारियों ने नाराजगी व्यक्त की है। हक हकूक धारियों कहना है कि पूरे विश्व में कोरोनावायरस इस समय अपने पैर पसार चुका है और उत्तराखंड में भी लगातार लॉक डाउन सिस्टम बढ़ाने से बद्रीनाथ धाम की यात्रा भी प्रभावित हो रही है लिहाजा केंद्र और राज्य सरकार को समय से पहले ही बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल जी को जोशीमठ में पहुंचाने का कार्य सर्वप्रथम करना चाहिए था लेकिन सरकार की लापरवाही से पौराणिक मान्यताओं पर भी छेड़छाड़ होने कि संभावना लग रही है । वही उत्तराखंड सरकार ऑनलाइन पूजा पद्धति को जोर देने की बात कह रही है लेकिन लोगों का कहना है कि जब तक रावल जी भगवान बद्री विशाल के दरबार में नहीं पहुंचेंगे तब तक कोई भी पूजा नहीं की जा सकती डिमरी पंचायत के पूर्व अध्यक्ष सुरेश चंद्र डिमरी का कहना है कि भाजपा सरकार सनातन धर्म को जीवित रखने की बात करती है लेकिन भगवान बद्रीविशाल के कपाट खोलने की प्रक्रिया में जो लापरवाही दिख रही है वह गंभीर है ।वही पांडुकेश्वर के हक हकूक धारी किशोर पवार का कहना है कि देव स्थलम बोर्ड घटित होने के बाद बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की रणनीति पर विचार-विमर्श अभी तक नहीं किया गया उनका कहना है कि आठवीं शताब्दी में जब शंकराचार्य जी ने पूजा पद्धति को सनातन धर्म के अनुसार व्यवस्थित किया था तो वर्तमान समय में भी इस सनातन धर्म की रक्षा के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए थे। भगवान बद्रीविशाल के कपाट खुलने में चंद दिन रह गए हैं लेकिन अभी तक रावल जी का जोशीमठ ना पहुंचना कहीं ना कहीं एक चिंताजनक विषय बना हुआ है

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