डिप्रेशन से बाहर निकलना बेहद मुश्किल होता है। शरीर के जख्म दिखाई देते हैं तो उन्हें भरने की दवा का इंतजाम जल्द से जल्द किया जाता है। पर जब इंसान मन से बीमार होता है तो किसी को दिखाई नहीं देता। डिप्रेशन दीमक की तरह है, किसी भी इंसान को भीतर से खा जाता है।
डिप्रेशन में लोग खुद को तन्हा महसूस करते हैं। उन्हें हर वक्त किसी ना किसी बात की चिन्ता सताती रहती है। डिप्रेशन के शिकार लोगों में दिल की बीमारी के खतरे भी बढ़ जाते हैं। इस खतरे को कम करने में व्यायाम अहम भूमिका निभाता है। दिल के रोगी का अवसाद का शिकार बनने से घातक नतीजे सामने आ सकते हैं। ऐसा अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के जरनल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है। अध्ययन के मुताबिक अस्पताल में भर्ती 20 फीसदी मरीज, जिन्हें दिल का दौरा पड़ा हो। उनमें अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं। हृदय रोगियों में बाकियों केमुकाबले अवसाद का खतरा तीन गुना ज्यादा होता है।