लखनऊ। लखनऊ में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भले ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन न हो पर दोनों दलों के बीच रिश्ते हमेशा से मधुर रहेंगे।अखिलेश का इशारा इस बात की ओर था कि राज्य में सपा-बसपा का गठबंधन जारी रहेगा, भले ही इस वजह से कांग्रेस सपा से दूर हो जाए।गोरखपुर और फुलपुर संसदीय उप चुनाव से पहले 25 साल बाद हुई सपा-बसपा की दोस्ती का एक और फल अखिलेश कैराना उपचुनाव में खाना चाहते हैं। बता दें कि पिछले साल विधानसभा चुनाव साथ लड़ने वाली कांग्रेस ने इन संसदीय उपचुनावों में सपा का साथ नहीं दिया था और दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-सपा की दोस्ती से दोनों दलों को नुकसान हुआ था जबकि उप चुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन का इन्हें फायदा मिला था। इसलिए,अखिलेश चाहते हैं कि अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भी सपा-बसपा का गठबंधन कायम रहे। इसके लिए वो कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने और सिर्फ मधुर संबंध बनाए रखना चाहते हैं। ताकि केंद्र में गैर बीजेपी सरकार बनने की दशा में फिर से चुनाव बाद कोई गठबंधन किया जा सके।राजनीतिक जानकारों के मुताबिक अखिलेश की इस चाल से न केवल गठबंधन को फायदा होगा बल्कि 2019 के उप चुनाव में दलित-पिछड़े-मुस्लिम और यादव वोटों का ध्रुवीकरण होगा,जो सपा और बसपा उम्मीदवारों को जीत दिलाने में कारगर हो सकता है।इसकी बानगी गोरखपुर-फुलपुर उप चुनावों में दिख चुकी है। यह भी हो सकता है कि कांग्रेस लोकदल या फिर अकेले ही चुनावी मैदान में उतरे।असल में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को यह यकीन है कि मुसलमान हमारे साथ ही रहेगा तो कांग्रेस की क्या जरूरत है।
हाथी के लिए हाथ छोड़ने को तैयार अखिलेश
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