हिन्दू धर्म ग्रंथों में जिन भी पेड़-पौधों का रिश्ता पूजा-पाठ तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है. उन सभी पेड़-पौधों, वनस्पतियों में कुछ न कुछ दिव्य और आयुर्वेदिक गुण जरूर हैं. और उनका उपयोग हजारों वर्ष पूर्व से पारम्परिक चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेद और इथ्नोबॉटनी में किया जाता रहा है. यानी पेड़—पौधों का महत्व उसके औषधीय गुणों के कारण है और उनके संरक्षण के लिए उनको धर्म ग्रंथों में विशेष स्थान दिया गया है.

ऐसे ही एक बहुप्रचलित लेकिन उपेक्षित कंटीला झाड़ीनुमा औषधीय वृक्ष है टिमरू. टिमरू सिर्फ पूजा-पाठ और भूत पिशाच भगाने के लिए कंटीली डंडी नहीं है. वेद और शिव पुराण के अनुसार टिमरू को भगवान शिव और भैरव की लाठी माना जाता है. आयुर्वेद में 200 से अधिक प्रकार के आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन में इसके बीजों और फल का उपयोग किया जाता है. गढ़वाल में इसको टिमरू, कुमाऊं में टिमूर, हिमाचल में तेजबल और नेपाल में इसे टिम्बूर कहते हैं. संस्कृत में टिमरू को तेजोवती के नाम से जाना जाता है. यही नहीं टिमरू को हिमालय का नीम भी कहा जाता है. आज यही टीमरू स्वरोजगार की तरफ लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है चमोली जनपद में कार्यरत संस्था आगाज फेडरेशन के माध्यम से चमोली जनपद के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में फेडरेशन की टीम के द्वारा टिमरू के पौधे रोपे जा रहे हैं इससे भविष्य में कई लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकता है टिमरू औषधियों के साथ-साथ अनेक प्रकार की दवाइयों में प्रयोग होने वाला बहुमूल्य पौधा है । फेडरेशन के संस्थापक जगदंबा प्रसाद मैठाणी का कहना है कि कोरोनावायरस के बाद जो लोग बाहरी राज्यों से पहाड़ी राज्यों में पहुंचे हैं वह अगर स्वरोजगार को अपनाना चाहते हैं तो टिमरू जैसे पौधों का रोपण कर सकते हैं इससे एक और जहां पर्यावरण को फायदा होगा तो वही औषधीय क्षेत्र में बेरोजगार लोग रोजगार उपलब्ध कर सकते हैं वहीं भूमि कटाव को रोकने के लिए भी यह पौधा बहुत ही कारगर साबित होता है आगाज फेडरेशन के माध्यम से दशोली विकासखंड, जोशीमठ विकासखंड के अनेक गांव में टीमरू के पौधे का रोपण किया जा रहा है जिसमें बढ़-चढ़कर महिला मंगल दल, नवयुवक मंगल दल, स्वयं सहायता समूह अपनी सहभागिता निभा रहे हैं।

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