देहरादून। शिक्षा को लेकर सरकार की नीतियों और निर्णयों पर हमेशा ही सवाल उठते रहें हैं।

प्रदेश में पलायन का एक मुख्य कारण पहाड़ पर शिक्षा के निम्न स्तर को भी माना जाता है।

उच्च शिक्षा की बात करें या प्राथमिक शिक्षा की प्रदेश की सरकारें हमेशा ही निजी शिक्षण संस्थाओं या यूं कहें शिक्षा माफियाओं के दबाव में रहीं हैं।

ताजा मामला कोरोना संक्रमण काल में हुए लॉकडाउन के दौरान स्कूलों की फीस से जुड़ा है।

एक ओर जहां स्कूल अभिभावकों पर फीस जमा करने का दबाव अलग-अलग तरीकों से बना रहे हैं वहीं अभिभावक इस आर्थिक

संकट में फीस माफ किये जाने की मांग कर रहें हैं।

लेकिन प्रदेश के शिक्षा मंत्री के बयान से लग रहा है मानो वो इन निजी स्कूलों की पैरवी कर रहे हों।

शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने बयान दिया है कि “अगर अभिभावक फीस नही दे सकते तो बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं”।

उनके इस बयान से प्रदेशवासियों में खासी नाराज़गी है।

लोगों का मानना है कि अगर सरकार सरकारी शिक्षा का स्तर ठीक रखती तो आमजन को पब्लिक स्कूलों की मनमानी का शिकार ना होना पड़ता।

अब देखना होगा कि मीडिया में शिक्षा मंत्री का बयान आने के बाद भड़के प्रदेशवासियों की नाराज़गी के बाद सरकार क्या कदम उठाती है।

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