भारतीय संस्कृति में किसी भी नारी को माताजी कहकर सम्मान दिया जाता है तो अनायास ही ममतामयी स्नेह का आनंद अनुभव होता है। उक्त विचार रविग्राम जोशीमठ में अन्तिम दिन की कथा में व्यक्त करते हुए जोतिष्पीठ व्यास आचार्य शिवप्रसाद ममगाईं जी ने भक्तों को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रथम गुरु माँ होती है बच्चे को जिस तरह से रखे आदत में ढालने वैसा ही ही उसका जीवन बनता है माँ का कर्म चरित्र व्यवहार वनता है पिता का कर्म पद प्रतिष्ठित बनाता है और अपना कर्म धनवान निर्धन बनाता है ममगाईं कहते हैं
*माता -माता स्यात् माननाच्च सा*।*स्कंद पुराण
मान देने योग्य को माता कहते हैं।
*नास्ति माता समम् तीर्थम् ,नास्ति माता समा गति।*
*नास्ति माता समं त्राणं,नास्ति माता समा प्रभा।।*
*कुच्छौः संधारनात् धात्री जननात् जननी तथा।*
*अंगानाम् वर्धनादंबा वीरसूत्वेण् वीरसः*
अर्थात् माता के समान कोई तीर्थ नहीं है,माता के समान कोई गति नह है। माता के समान कोई रक्षक नहीं,माता के तुल्य ज्योति नहीं। माता ही है जो हमें कोख में धारण कर हमारी सृष्टि,वृद्धि करती है।
शास्त्रानुसार माता का स्थान पिता से दसगुणा बड़ा है-पितृः दशगुणा माता
माता कौशल्या श्रीराम के वनगमन समय कहती हैं-
*पितु आयसु सब धरमक टीका।*
पिता का आदेश श्रेष्ठ है किन्तु-
जौ केवल पितु आयसु ताता।तौ जनि जाहू जानि बड़ी माता।।
माता गुरु और पिता से बड़ी होती हैं।
अतः हमारी संस्कृति में माता को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।
वह गोमाता पृथ्वी माता या कि भी रूप में हो,माँ तो माँ होती है।
भरतजी श्रीराम के सन्मुख माता कैकेई को दोषी और अपने को दोष का मूल कहते हैं तो श्रीराम कहते हैं-
*जननिहि दोष देई जड़ तेई।*
*जिन्ह गुरू साधु सभा नहीं सेई।।*
जो माता को दोष देगा उसे श्रीराम जड़ कहते हैं।
जो भी व्यक्ति माता को दोषी ठहराता है वह कभी गुरु और साधु की सत्संगति नहीं की है।
मैथिलीशरण कहते हैं-
पुत्र कुपुत्र सुने हैं पर माता हुई ना कुमाता…
मित्रों ममतामयी शब्द है माता…
*या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः.* *
आयोजन कर्ताओं के द्वारा भण्डारे का आयोजन किया गया जिसमें दूर दराज़ से आकर लोगों ने कथा का आनंद लिया विशेष रूप से हरीश डिमरी सन्दीप डिमरी कविता डिमरी सुरुचि डिमरी वर्षा मोहित मैठानी संजीव मैठानी वियान डिमरी डाक्टर संजय डिमरी सुभाष डिमरी हर्ष वल्लभ भट्ट अनिल डिमरी डाक्टर प्रदीप सेमवाल आचार्य जगदीश जोशी
जगदीशा नन्द महाराज विनोद डिमरी किशन सिंह भुजवाण गणेश डिमरी कुशला नन्द बहुगुणा जानकी प्रसाद बहुगुणा दूर दराज़ से आकर लोगों ने कथा का आनंद लिया ।।

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