देश में पहली बार साल की नर्सरी तैयार, Delhi-Dehradun Expressway के लिए काटे गए 11 हजार पेड़ों की कमी होगी पूरी

Indias First Sal Nursery देश में पहली बार साल की नर्सरी तैयार कर रहा है वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई)। दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के लिए काटे गए 11 हजार पेड़ों की कमी को यह नर्सरी पूरी करेगी। एफआरआई ने अब तक 15 हजार से ज्यादा साल के पौधे तैयार किए हैं। साल के पेड़ों का पौधारोपण बेहद मुश्किल माना जाता है लेकिन एफआरआई ने इस चुनौती को स्वीकार किया है।

एफआरआइ के वरिष्ठ विज्ञानी डा. दिनेश कुमार के मुताबिक, साल का पौधारोपण संभव नहीं हो पाता। वजह यह कि इसे सर्दी के मौसम में ठंड से खतरा होता है तो गर्मी में अधिक तापमान से। वर्षाकाल में साल के पौधों को अधिक पानी से बचाने की जरूरत पड़ती है। यही कारण है कि आज तक देश में साल का सफल पौधारोपण नहीं हो पाया। हालांकि, इस चुनौती को एफआरआइ ने स्वीकार किया और साल की नर्सरी तैयार करने में ताकत झोंक दी है।

सभी पर्यावरणीय परिस्थितियों में उगाए जा रहे पौधे
एफआरआइ के वरिष्ठ विज्ञानी डा. दिनेश कुमार के अनुसार, साल के पौधों को बीज से उगाया जा रहा है। ध्यान रखा जा रहा है कि साल के पौधों को अलग-अलग पर्यावरणीय परिस्थिति के मुताबिक उगाया जाए। ताकि साल की ऐसी नर्सरी तकनीक विकसित की जा सके, जो साल के पौधारोपण की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव ला सके। लाखों पौधों में गिने-चुने बचते हैं जीवित वन विज्ञानियों के अनुसार, साल के वनों में बीजों से साल के लाखों पौधे उगते हैं, लेकिन गिने-चुने ही पेड़ बन पाते हैं। हालांकि, जब एफआरआइ की ओर से नर्सरी तकनीक विकसित कर दी जाएगी, तब इसका लाभ साल के प्रत्येक वन को मिल सकेगा।
साल के वनों में बढ़ रहे खाली स्थान

एफआरआइ के वरिष्ठ विज्ञानी डा. दिनेश ने बताया कि समय के साथ साल के वनों में खाली स्थान बढ़ रहे हैं। साल के पेड़ों की आयु पूरी होने के बाद नए पौधों का अपेक्षित विकास न होने के चलते ऐसा हो रहा है।

एफआरआइ को चाहिए पांच हेक्टेयर वन भूमि

साल के पौधों की नर्सरी तैयार हो जाने के बाद उन्हें वन भूमि में लगाया जाएगा। साथ ही एफआरआइ उनकी देखभाल भी कराएगा। इसके लिए विज्ञानियों ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश वन विभाग से पांच हेक्टेयर वन भूमि उपलब्ध कराने की मांग की है। प्रथम चरण में एफआरआइ की योजना 20 हजार पौधे लगाने की है।
एनजीटी तक पहुंचा पेड़ कटान का मामला
पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे विभिन्न संगठनों ने एलिवेटेड रोड के लिए साल के पेड़ों को काटने का विरोध किया था। यह प्रकरण एनजीटी तक पहुंचा और एनजीटी ने काटे जाने वाले पेड़ों के बदले नए पौधे लगाने की बात कही तो एनएचएआइ ने हाथ खड़े कर दिए, क्योंकि साल के पौधारोपण की तकनीक देश में उपलब्ध नहीं थी। बाद में एफआरआइ के माध्यम से नर्सरी विकसित कराने की योजना पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया गया, तब जाकर एलिवेटेड रोड के लिए साल के पेड़ों को काटने की मंजूरी मिली।
उत्तर प्रदेश में उगाए गए पौधे बने मुसीबत
साल के पौधों को पेड़ बनाने का एक सफल प्रयोग उत्तर प्रदेश में किया गया था, लेकिन बाद में यह वन विभाग के लिए परेशानी का सबब बन गया। बस्ती, गोरखपुर, गोंडा आदि क्षेत्रों में वन विभाग ने साल के पौधे लगाने के साथ ही कई व्यक्तियों को वन क्षेत्र में रहने की अनुमति भी प्रदान की ताकि देखरेख में कमी न रहे। इसके बेहतर परिणाम भी सामने आए, लेकिन बाद में वन क्षेत्रों में रह रहे लोग जगह छोड़ने को तैयार नहीं हुए। लिहाजा, यह माध्यम वहीं बंद कर दिया गया।