प्रत्येक वर्षों की तरह इस वर्ष भी ग्राम सेलंग में रम्माण का आयोजन किया गया। वर्ष के बैशाख माह में ग्राम सेलंग की संयुक्त पंचायत इस मेले का आयोजन करती है। वर्ष के बैशाख माह की संक्रांति से इस मेले की शुरुआत होती है और विभिन्न चरणों में भूमियाल देवता की पूजा और हर दिन घर कुटे चावल से बने भात का भोग लगाया जाता है। अंततः इस मेले का समापन सांस्कृतिक विरासत “रम्माण” के साथ होता है। रम्माण मेले की तिथि ग्राम पंचायत की संयुक्त बैठक में निकली जाती और और पंचायत द्वारा ऐसे दिन और बार को तय किया जाता है जिसमे दिन बेजोड़ जैसे 5,7,9,11,13 गते और बार रविवार या बुधवार! इसी क्रम में इस साल पंचायत ने 11 गते बैशाख, बुधवार का समय निकाला है। रम्माण मेला पैनखंडा की पौराणिक सांस्कृतिक विरासत ही नहीं बल्कि यहाँ की प्राचीन जीवन पद्धति है, लोक की संस्कृति है। क्षेत्र के ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोग इस मेले को देखने गांव में आते है और स्थानीय देवी-देवता “भूमियाल” से प्रार्थना करते है कि साल में उगने वाली फसल अच्छी हो और इस पर किसी प्रकार का दैवीय खतरा पैदा न हो! रम्माण मेले में मुख्यतः
गणेश, राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान ढोल की 18 तालों पर नृत्य ,सूर्य, कानडु, ईश्वर, गाना-गानी, माल मल युद्ध नृत्य, होता है तथा चोर का पात्र सबका मनोरंजन करता है। अंत में भूमियाल देवता प्रकट होते है और मेले में आये सभी भक्तों को आशीर्वाद देकर सालभर के लिए अपने मूल स्थान में विराजमान हो जाते है।
वर्तमान में स्थानीय ग्रामीण अपने व्यक्तिगत संसाधनों से ही इस मेले का आयोजन कर रहे है और हर वर्ष मेले अपनी रीति-नीति से मना रहे है। पौरणिक और पारंपरिक होने के बाद भी सरकारों एवं द्वारा इसके संरक्षण लोक संस्कृति को बचाये रखने हेतु कोई कार्य नहीं किया गया है। वर्ष 2009 में यूनेस्को ने रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया है इसमें पूरी पैनखंडा की रम्माण आती है फिर एक गांव विशेष की रम्माण को तरजीह देने से स्थानीय ग्रामीणों में मायूसी है।
इस मौके पर ग्राम गाण्या श्री शिशुपाल सिंह भंडारी, मुरली सिंह फरस्वान, मातवर सिंह पंवार, राजे सिंह बिष्ट, कुंदन सिंह बिष्ट, राजेन्द्र सिंह बिष्ट, मातवर सिंह पंवार, कल्पेश्वर भंडारी रुकमणी देवी, सरस्वती देवी , उर्मिला देवी ,युवा मंगलदल ग्राम सेलंग और महिला मंगलदल सेलंग के सभी सदस्यगण सम्मिलित थे!

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