देहरादून

राज्य सूचना आयोग ने सूचना अधिकार के अंतर्गत सीसीटीवी फुटेज की सूचना पर एक निर्णय में यह स्पष्ट करते हुए हरिद्वार के खाद्य विभाग के लोक सूचना अधिकारी पर सीसीटीवी फुटेज संरक्षित किये बिना देने से इंकार करने पर 25 हजार रूपये का जुर्माना लगाते हुए सूचना अधिकार के अंतर्गत मांगी गयी सीसीटीवी फुटेज को अधिनियम के प्राविधान के अनुसार द्वितीय अपील की समय सीमा तक संरक्षित रखे जाने हेतु अवगत कराया है।

रूड़की, जनपद हरिद्वार निवासी उदयवीर सिंह ने अनुरोध पत्र दिनांक 02/06/2023 के माध्यम से जिला पूर्ति अधिकारी, हरिद्वार के कार्यालय में लगे सीसीटीवी कैमरे की दिनांक 25.05.2023 समय 10 बजे से 3 बजे तक की रिकार्डिंग मांगी गयी थी, जिसके सापेक्ष लोक सूचना अधिकारी के रूप में पूनम सैनी द्वारा दिनांक 04/07/2023 को अपीलार्थी को सूचना प्रेषित की गयी है, जिसमें सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(छ) का उल्लेख करते हुए सूचना देने की बाध्यता नहीं है का उल्लेख किया गया है।

जब इस प्रकरण की सुनवाई योगेश भट्ट, राज्य सूचना आयुक्त द्वारा की गयी तो सुनवाई में लोक सूचना अधिकारी द्वारा कथन किया गया कि तत्समय सी0सी0टी0वी0 कैमरे लगाते समय कार्यालयाध्यक्ष की ओर से सी0सी0टी0वी0 कैमरे की फुटेज बै्रक-अप/संरक्षित रखे जाने सम्बन्धी कोई आदेश अथवा निर्देश प्राप्त नहीं हुये जिसके फलस्वरूप कभी भी सी0सी0टी0वी0 कैमरे की फुटेज संरक्षित नहीं रखी गयी है।

राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि प्रायः सूचना अधिकार अधिनियम के छूट प्राविधानों धारा (8) का उल्लेख करते हुए लोक सूचना अधिकारियों द्वारा सीसीटीवी फुटेज देने से इंकार किया जाता है। स्पष्ट किया जाता है कि सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 2(थ्) के अंतर्गत इलेक्ट्रानिक रूप में उपलब्ध रिकार्ड होने के कारण सीसीटीवी फुटेज ‘सूचना‘ के अंतर्गत प्राप्त की जा सकती है।

सीसीटीवी फुटेज साक्ष्य होने के साथ ही घटनाओं एवं कथनों की पुष्टि करने में मददगार है इसलिए लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत उस सीमा तक देने से इंकार नहीं किया जा सकता है जब तक वांछित सीसीटीवी फुटेज राज्य की सुरक्षा, संप्रभुता अथवा किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए खतरा न हो। सूचना अधिकार में सीसीटीवी फुटेज की मांग पर प्रायः संप्रभुता एवं सुरक्षा की दलील दी जाती है, हर प्रकरण में यह दलील उपयुक्त हो यह जरूरी नहीं है। अधिकांशतः इस दलील का इस्तेमाल सीसीटीवी फुटेज न देने की मंशा से किया जाता है।

निःसंदेह यह तय करना आसान नहीं है कि कोई सीसीटीवी फुटेज सुरक्षा या संप्रभुता के लिए खतरा है अथवा नहीं,लोक सूचना अधिकारी द्वारा इस आधार पर सीसीटीवी फुटेज देने से इंकार किये जाने पर सूचना दिये जाने की मंशा पर सवाल भी नहीं उठना चाहिए लेकिन सवाल तब उठता है जब सूचना अधिकार में मांगी जाने वाली फुटेज संरक्षित नहीं की जाती और प्रथम या द्वितीय अपील के निस्तारण से पूर्व वांछित फुटेज डिलीट हो जाती है और सुनवाई में फुटेज के डिलीट हो जाने से अवगत कराते हुए इतिश्री कर ली जाती है। सीसीटीवी फुटेज के संबंध में यह अत्यंत गंभीर है लोक सूचना अधिकारी को स्पष्ट किया जाता है कि सूचना अधिकार में वांछित सूचना के अंतर्गत सीसीटीवी फुटेज को अधिनियम की धारा (8) के अंतर्गत मानते हुए न देने का निर्णय करने का अधिकार लोक सूचना अधिकारी को उस स्थिति में है जब उसके द्वारा वांछित फुटेज को संरक्षित रखा गया हो।

वांछित फुटेज को संरक्षित रखे बिना अधिनियम की धारा (8) को आड़ बनाकर सीसीटीवी फुटेज देने से इंकार करना साक्ष्य को मिटाने जैसा है। यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी भी लोक प्राधिकार में सूचना अधिकार के अंतर्गत सीसीटीवी फुटेज के लिए इंकार किये जाने से पूर्व सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत द्वितीय अपील की समय सीमा तक अनिवार्य रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए। समस्त लोक प्राधिकरणों को इस संबंध में लोक सूचना अधिकारियों को विधिवत निर्देशित भी किया जाना चाहिए।

प्रस्तुत की गई अपील में गत सुनवाई पर जारी कारण बताओ नोटिस के सापेक्ष पूनम सैनी, तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरण को संतोषजनक एवं सूचना अधिकार अधिनियम के अनुरूप न पाते हुए समग्र परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त पूनम सैनी, तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी पर रू0 25,000/- (रूपये पच्चीस हजार) की शास्ति इस चेतावनी के साथ अधिरोपित की गयी कि भविष्य में वह सूचना अधिकार अधिनियम के प्राविधानों के प्रति सजग रहें।