बलबीर परमार
उत्तरकाशी। यूं तो उत्तराखंड के गांव गांव में सदियों से चली आ रही मान्यताएं आज भी जिंदा है। इसका जीता जागता एक उदाहरण उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में भी देखने को मिलता है। यहां पंडित की पोथीए डाक्टर की दवा और कोतवाल का डंडा काम नहीं आता है। कंडार देवता के दर पर जो पहुंच गया तो कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य है।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में कंडार देवता का प्राचीन मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र ही नहींए बल्कि एक न्यायालय भी है। इस न्यायालय में फैसले कागजों में नहीं होते और न ही वकीलों की कार्यवाही होती है। यहां फैसला देवता की डोली सुनाती है। लोग यहां जन्मपत्री, विवाह, मुंडन, धार्मिक अनुष्ठान, जनेऊ समेत अन्य संस्कारों की तिथि तय करने के लिए पंडित की तलाश नहीं करते। कंडार देवता मंदिर के परिसर में जमा होकर श्रद्धालु डोली को कंधे पर रख कंडार देवता का स्मरण करते हैं। इस दौरान डोली के डोलने से इसका अग्रभाग जमीन का स्पर्श करता है। इससे रेखाएं खिंचने लगती हैं। इन रेखाओं में तिथि व समय लिख जाता है। आस्था है कि जन्म कुंडली भी जमीन पर रेखाएं खींचकर डोली स्वयं ही बना देती है। कई ऐसे जोड़ों का विवाह भी कंडार देवता करवा चुका हैए जिनकी जन्मपत्री को देखने के बाद पंडितों ने स्पष्ट कह दिया था कि विवाह हो ही नहीं सकता। मात्र यहीं नहीं बल्कि आस पास के गांवों में जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसे उपचार के लिए कंडार देवता के पास ले जाया जाता है। सिरर्ददए बुखारए दांत दर्द तो ऐसे दूर होता है जैसे पहले रोगी को यह दर्द था ही नहीं। क्षेत्र के बुजुर्ग महिमानंद भट्ट, परमानंद नौटियाल, चन्द्रमोहन भट्ट, ज्योती प्रसाद नैथानी आदि का कहना है कि पंडित की पोथी, डाक्टर की दवा और कोतवाल का डंडा का काम कंडार देवता करता है। यहां हर मर्ज की दवा कंडार देवता के पास है। इस लिए क्षेत्र के लोगों का देवता की शक्ति पर अटूट विश्वास है। ऐसे पहुंचे कंडार देवता के दर्शन करने के लिए ऋषिकेश से 160 किलोमीटर व देहरादून से 140 किलोमीटर की सड़क मार्ग की दूरी तय कर उत्तरकाशी पहुंचे । उत्तरकाशी बस अड्डे से आधा किलोमीटर दूर कलक्ट्रेट के पास कंडार देवता का भव्य मंदिर है। यह मंदिर वर्षों पुराना है। उत्तरकाशी शहर के निकट संग्राली, पाटा, बग्यालगांव में भी कंडार देवता के मंदिर हैं।

सौःअरण्यरोदन टाइम्स

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