नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) लिस्ट के अंदर आने वाले सरकारी बैंकों ने अपने एटीएम बंद करने शुरू कर दिए हैं। कॉस्ट को कम करने के लिए आरबीआई के रेगुलेटरी ऑर्डर के बाद इंडियन ओवरसीज बैंक से लेकर कैनरा बैंक तक ने अपने एटीएम के शटर गिराने शुरू कर दिए हैं। आरबीआई के डाटा के मुताबिक इन सरकारी बैंकों ने पिछले एक साल में 1,635 एटीएम बंद किए हैं।
आरबीआई के पीसीए लिस्ट में आने वाले सरकारी बैंकों ने पिछले एक साल में कई एटीएम बंद कर दिए हैं। ये भी तब हुआ है जब पिछले एक साल में ग्रामीण भारत सहित देश में कैश विदड्रॉअल 22 प्रतिशत बढ़ा है। इस लिस्ट में इलाहाबाद बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और यूको बैंक शामिल हैं। एटीएम में कटौती आरबीआई के रेगुलेटरी ऑर्डर्स के बाद की जा रही है। सबसे ज्यादा एटीएम इंडियन ओवरसीज बैंक ने बंद किए हैं।
बैंक ने अपने 15 प्रतिशत एटीएम के शटर गिरा दिए हैं। पिछले साल अप्रैल में बैंक के एटीएम की संख्या 3,500 थी, जो अब केवल 3,000 रह गई है। इसके बाद कैनरा बैंक और यूको बैंक हैं, जिन्होंने अपने 7.6 प्रतिशत एटीएम बंद किए हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब नेशनल बैंक ऐसे दो बड़े बैंक हैं, जो पीसीए से बाहर होने के बावजूद एटीएम में कटौती कर रहे हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा ने 2,000 एटीएम बंद किए हैं, वहीं स्कैम में फंसे पीएनबी ने 1,000 एटीएम बंद किए।
जहां सरकारी बैंक एटीएम में कटौती कर रहे हैं, वहीं प्राइवेट और स्मॉल फाइनेंस बैंक (एसएफबी) ने इसकी कमी पूरी कर दी है। नए फीनो पेमेंट बैंक ने 2,700 एटीएम मशीनें लगाई हैं, वहीं सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 500 नए एटीएम लगाए। वहीं प्राइवेट बैंकों ने साल 2016 से 2017 के बीच 7,500 नए एटीएम इंस्टॉल किए। हालांकि ये आंकड़ा उससे पिछले साल के मुकाबले कम है जब प्राइवेट बैंकों ने 15,714 एटीएम लगाए थे। एसबीआई के डिप्टी मैनेंजिंग डायरेक्टर नीरज व्यास ने कहा की एटीएम बिजनेस खास आकर्षक नहीं है।
उन्होंने कहा, एक एटीएम की कीमत 2.5 लाख होती है और ऑपरेशनल कॉस्ट 4.-5 लाख के बीच। इसपर 20 लाख रुपये और जोड़ लें जिसपर कोई रिटर्न नहीं मिलता। अपने नेटवर्क पर नकदी और फ्री ट्रांस्जैक्शन का प्रबंधन करते हैं, और फिर हमारे ग्राहक अन्य बैंकों के एटीएम का उपयोग करते हैं। इससे एटीएम बिजनेस कोई भी आकर्षक नहीं बनता है। मार्च 2016 से दिसंबर 2017 के बीच स्टेट बैंकों के शेयर में भारी गिरावट देखने को मिली थी। इस दौरान कॉमर्शियल लेंडिंग मार्केट में इन बैंकों के शेयर 32 लाख गिरे। वहीं इसी दौरान प्राइवेट बैंकों के शेयर 9.1 लाख करोड़ से बढ़कर 10.9 लाख करोड़ और एनबीएफसी में ये 2.2 लाख करोड़ से 3.9 लाख करोड़ पहुंच गए थे।