बलबीर परमार
चीन बॉर्डर पर उत्तरकाशी में देश के अंतिम गाँव जादूंग में विस्थापित हुए दो गांव के ग्रामीणों ने पहुँच कर अपने देव देवताओ की पूजा अर्चना की। नेलांग जादूंग समेत तीन गाँव के ग्रामीण हर साल मई जून के महीने में देव डोली के साथ जादूंग पहुँचते है और पूजा अर्चना करते है। भारत चीन युद्ध से पहले ये सभी ग्रामीण यंही रहते थे और तिब्बत से व्यापार करते थे। युद्ध के बाद इस पूरे क्षेत्र को को सामरिक दृष्टि से प्रतिबंधित कर दिया गया था। वंही बॉर्डर पर रहने वाले ग्रामीणों का विस्थापन हर्षिल बगोरी कर दिया था। जिसके बाद से हर साल ग्रामीण हर्षिल बगोरी से जून माह में एक दिन अपनी ईष्ट देवी की डोली के साथ पूजा अर्चना करने पहुँचते है। इन लोगो की पांडवो में भी बड़ी आस्था है हर साल तीन गाव के ये ग्रामीण पांडव को पूजा अर्चना भी पांडवो की थात जादूंग बॉर्डर पर करते है । पांडवो से जुड़ी आस्था का संगम हर साल बॉर्डर पर देखा जाता है।

आज भी जादूंग बॉर्डर पर इन ग्रामीणों के पुराने कलाकारी से बने भवनों के अवशेष देखे जा सकते है।इस पल को देखने के लिए पर्यटक भी ग्रामीणों के साथ हर साल ग्रामीणों के साथ यंहा पहुँचते है।

भवनों के सुंदर सूंदर अवशेष आज भी ग्रामीणों को अलग सा अनुभव यंहा कराता है।

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