उत्सव मनाने का दयनीय तरीका है ये,
यह गंगा घाट, लक्ष्मण झूला पर होली उत्सव का दुष्परिणाम है।

अब इन दृश्यों को देखकर एक बात निश्चित हो जाती है कि यात्रियों में कोई सम्मान, नैतिकता, कोई सांस्कृतिक लोकाचार नहीं बचा है।

प्रकृति और माँ गंगा दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है क्योंकि हम इस पागल भौतिकवाद और दिखावे में बहुत अधिक रम गए हैं।
अरे, अपना कचरा वापस ले जाना कितना मुश्किल है? इस स्थान को अपना घर मानना ​​कितना कठिन है?

तपोवन के स्थानीय युवाओं को प्रणाम और साधुवाद जिन्होंने इन जाहिल मनुष्यों द्वारा छोड़े गए सभी कचरे को एकत्र किया।

मां गंगा जी हमें जीना सिखाएं

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