उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय नैनीताल ने आपदाग्रस्त क्षेत्र के लोगों द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज कर दी । याचिका खारिज करने के पीछे जो तर्क दिया गया है उसके अनुसार याचिका कर्ता गम्भीर नहीं हैं । और याचिकाकर्ताओं के इरादों से न्यायालय आश्वस्त नहीं है ।
साढ़े चार सौ पेज की याचिका में यही ढूंढा जा सका यह आश्चर्य की बात है ।

याचिका कर्ता में तीन लोग रैणी गांव के मूल निवासी हैं । जो आपदा से प्रभावित गांव है । ग्रामसभा की बैठक के प्रस्ताव व सर्वसम्मति से लिये गए निर्णय से न्यायालय गए हैं । जिनमें एक भवान सिंह राणा जी वर्तमान में ग्रामसभा के प्रधान हैं । संग्राम सिंह जी पूर्व क्षेत्र पनचायत सदस्य हैं, और पूर्व में ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ नैनिताल उच्च न्यायालय जा चुके हैं । तब न्यायालय ने उनकी गम्भीरता व इरादों पर संदेह नहीं किया था । तीसरे सोहन सिंह जी चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी के पोते हैं ।
दो लोग जोशीमठ से हैं जिनमें एक कमल रतूड़ी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होने के साथ साथ बीस से अधिक वर्षों से आन्दोलन कारी हैं । प्रशिक्षित बेरोजगार लोगों के आंदोलन के नेता रहे हैं ।
जोशीमठ में परियोजनाओं के खिलाफ चले आंदोलन में सदा से सक्रिय रहे हैं । पांचवे अतुल सती वामपंथी पार्टी भाकपा माले के राज्य कमेटी सदस्य हैं ।
व उत्तराखण्ड आंदोलन से लेकर आज तक विभिन्न आंदोलनों के नेता रहे हैं । जल विद्युत परियोजनाओं के आंदोलन में पिछले 20 से अधिक वर्षों से सक्रिय हैं । पर्यावरण के सवालों पर लगातार बोलते लिखते लड़ते रहे हैं ।
अपील में रिणी गांव के विस्थापन के सवाल के अलावा जिन कम्पनियों की लापरवाही के चलते 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी उनपर जिम्मेदारी आयद करने की मांग की गई थी
आपराधिक लापरवाही तय करने की बात थी । क्योंकि बाढ़ के बाद प्राकृतिक भौगोलिक हालात बदल गए हैं इसलिए परियोजनाओं की पर्यावरणीय स्वीकृति रदद् करने व पुनः लेने की मांग थी । परियोजना के चलते मरे लोगों के उचित मुआवजे की मांग थी । कम्पनियों को काली सूची में डालने की मांग थी । इन परियोजनाओं को क्षेत्र के लिए हम शुरू से ही विनाशकारी मानते रहे हैं इसलिए इनके रदद् किये जाने की भी मांग थी ।
बजाय इन महत्वपूर्ण सवालों पर बहस होने के सरकार व एनटीपीसी के वकील ने याचिकाकर्ताओं के इरादे व उनकी विश्वशनियता पर सवाल किया । जो वर्षों से जनता के सवालों पर लड़ते रहे हैं मुकदमे झेलेते रहे हैं जेल गए हैं ।
कहां कि हमारे लोकतांत्रिक संवैधानिक अधिकारों का हनन तो है ही यह फैसला अन्य लोगों को भी भविष्य में अपनी बात उठाने से रोकने की नजीर बनेगा । इसलिए हम लोग इस पर न्यायालय से पुनर्विचार की प्रर्थना करेंगे । यदि यह नहीं हुआ तो सर्वोच्च न्यायालय का द्वार भी खटखटाएंगे ।

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