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राज्य स्तरीय सेमीनार का आयोजन

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पंचकूला। हरियाणा मानवाधिकार आयोग चण्डीगढ द्वारा हरियाणा पुलिस अकादमी मधुबन के हर्षवर्धन सभागार में आज एक राज्य स्तरीय सेमीनार का आयोजन किया गया। मानवाधिकार और बच्चों के संरक्षण संबंधी मामलों के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से आयोजित इस सेमीनार की अध्यक्षता आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एसके मित्तल ने की। इसमें हरियाणा पुलिस के निरीक्षक, उप-पुलिस अधीक्षक, पुलिस अधीक्षक, किशोर न्याय बोर्ड के प्रधान मजिस्टे्रट और महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने भाग लिया। सेमीनार में हरियाणा मानवाधिकार आयोग के सदस्य जस्टिस केसी पुरी, आयोग में पुलिस महानिदेशक डा. केपी सिंह, आयोग की सदस्य सचिव डा. रेनु एस फुलिया, न्यायिक अकादमी चंडीगढ के अध्यक्ष डा. बीआर गुप्ता, फरीदाबाद के जिला एवं सत्र न्यायधीश दीपक गुप्ता, आयोग के उप रजिस्ट्रार एवं सीजेएम हेमराज मित्तल, प्रशासनिक सुधान संस्थान (आइसीए)चण्डीगढ की उप निदेशक डा. उपनीत लाली ने अपने विचार रखे।
सेमीनार के शुभारंभ अवसर पर मुख्य अतिथि जस्टिस मित्तल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की आबादी में 40 प्रतिशत बच्चे हैं जिनकी उम्र 18 साल से कम है। इनके हितों की रक्षा के बिना मानवाधिकारों की रक्षा संभव नहीं है। हम सभी को मानवाधिकार प्राप्त है। बच्चे का मानवाधिकार उसके पैदा होने से पहले गर्भ में ही आरंभ हो जाता है। पैदा होने पर उसे ऐसे वातावरण का अधिकार है जिसमें वह पोषण प्राप्त करे और आपना विकास कर सके। इसके बाद उसे शिक्षा हासिल करने और किसी भी प्रकार की हिंसा से बचाव का भी अधिकार है। आज यह विचारनीय है कि बच्चों के खिलाफ हिंसा, अनदेखी और उनके साथ दुराचार जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। हम बच्चों को भीख मांगते हुए देखते हैं और चुप रहते हैं या उन्हें भीख देकर ही अपना कत्र्तव्य पूरा होना मान लेते हैं हम नहीं नहीं सोचते कि इन बच्चों का स्थान स्कूल में होना चाहिए। इन मुद्दों की अनदेखी करने का एक परिणाम यह भी है कि बच्चों पर होने वाले तथा बच्चों द्वारा अपराध की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। यह चिंता का विषय है। हम सबका और विशेष तौर पर पुलिस का उत्तरदायित्त्व है कि हम बच्चों को दुराचार और अन्य किसी भी प्रकार की हिंसा से सुरक्षित रखें। आज की सेमीनार इसी उद्देश्य से आयोजित की गई है कि हम बच्चों से जुड़े मामलों पर जागरूक हो और बच्चों के संरक्षण के लिए गंभीरता से प्रयासरत हो। उन्होंने सेमीनार में उपस्थित प्रतिभागियों का सलाह देते हुए कहा कि यह हमारा कत्र्तव्य बनता है कि हम बच्चों को अपराध से दूर रखें, उनके अधिकारों को सहज रूप से उन्हें दिलाने के लिए कार्य करें। बच्चों को सुरक्षित व अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने के लिए आयोग, न्यायालय, सामाजिक सशक्तिकरण विभाग व पुलिस को आपसी सहयोग से कार्य करना होगा।
न्यायिक अकादमी चंडीगढ के अध्यक्ष डा. बीआर गुप्ता ने मानवाधिकारों की अवधारणा से परिचित करते हुए कहा कि मानवाधिकार का आधार संविधान या कानून नहीं बल्कि मानव के रूप में जन्म है। भारत के संवधिन के अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार मौलिक अधिकार है। इस अधिकार में अनेक मानवाधिकार निहित हैं। जीवन के अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता। खुशी का अधिकार भी जीवन के अधिकार में शामिल है। उन्होंने कहा कि पुलिस को यह देखना चाहिए कि किसने क्या गलत और क्या सही किया है उसे मानवाधिकारों को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही करनी चाहिए। उन्होंने मानवाधिकार संरक्षण के लिए पुलिस को मूलमंत्र देते हुए कहा कि हमेशा सकारात्मक मानसिकता से कार्य करें। सकारात्मक सोचें और करें इससे दूसरे के हितों की रक्षा कर पाएगें। उन्होंने न्याय के अधिकार के संदर्भ में कहा कि न्याय प्राप्त न होना एक नागरिक के मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि अपने व्यवहार में मानवीयता, चिंतन में सकारात्मकता और मन में मानवाधिकारों के प्रति सम्मान रखें इससे स्वयं को तथा सामने वाले को खुशी मिलेगी।
आयोग के पुलिस महानिदेशक डा. केपी सिंह ने प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में कहा कि प्रायरू पुलिसवालों के मानवाधिकारों के होने या न होने की चर्चा होती है। इस संबंध में उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से तो प्रत्येक व्यक्ति के मानवाधिकार है लेकिन संस्थागत रूप से पुलिस को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त हैं। अतरू एक अच्छा पुलिसकर्मी वही है जो अपने इन विशेष अधिकारों का उपयोग आम नागरिकों के मानवाधिकारों के संरक्षण में करे। उन्होंने 24 घंटेे ड्यूटी के सवाल पर कहा कि 8 घंटे ड्यूटी के बारे में सरकार और प्रशासन में विचार होने लगा है यह विचार अभी प्रारम्भिक अवस्था में है जो एक दिन अवश्य परिपक्व हो जाएगा। थर्ड डिग्री पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी बहाने से थर्ड डिग्री जायज नहीं है। हमें अपनी पेशेवर क्षमता, ईमानदारी और फोरेसिंक विज्ञान की सहायता से कार्य करना चाहिए। यदि किसी पीडि़त की इन प्रयासों के बावजूद भी भरपाई नहीं होती है तो कानून उसे क्षतिपूर्ति के लिए सिविल दावा करने की इजाजत देता है। इसलिए किसी भी बरामदगी या सूचना हासिल करने के नाम पर थर्ड डिग्री भूल कर भी न दें।
आयोग उप रजिस्ट्रार एवं सीजेएम हेमराज मित्तल ने आयोग की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति आयोग में सादी दरखास्त लिखकर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है। उसे आयोग में शिकायत करने के लिए किसी वकील या कोर्ट फीस की आवश्यकता नहीं है। शिकायत हिन्दी, अंग्रेजी या किसी भी भारतीय भाषा में की जा सकती है। शिकायत दाखिल करते समय शिकायत के साथ दस्तावेज लगाने की आवश्यकता नहीं है, जांच के दौरान यदि जरूरी हो तो आयोग शिकायतकत्र्ता से दस्तावेजों को ले लेता है। शिकायत वह व्यक्ति भी कर सकता है जिसके मानवाधिकारों का हनन हुआ हो और वह व्यक्ति भी कर सकता है जो किसी के मानवाधिकारों का हनन होते हुए देखता है। शिकायत पेश होकर, डाक से, ई-मेल या फेक्स द्वारा की जा सकती है। हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने प्रत्येक जिले में मानवाधिकार कैंप लगाने आरम्भ किए हैं आगामी कैंप 27 जुलाई को झज्जर में लगेगा।
द्वितीय सत्र में फरीदाबाद के जिला एवं सत्र न्यायधीश दीपक गुप्ता ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल व संरक्षण) अधिनियम 2015 व इसके नियम संबन्धी प्रावधानों के बारे में बताया तथा प्रशासनिक सुधार संस्थान चंडीगढ की उप निदेशक डा. उपनीत लाली ने बच्चों के पुनर्वास और उनके सामाजिक पुनर्मिलन मामलों के बारे में चर्चा की।सेमीनार में हरियाणा सशस्त्र पुलिस अकादमी के हरदीप सिंह दून ने मुख्य अतिथि सहित अन्य उपस्थितगणों का स्वागत किया तथा अकादमी के पुलिस अधीक्षक सुमेर प्रताप सिंह ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों को आभार व्यक्त किया। अकादमी के जिला न्यायवादी शशिकांत शर्मा ने सेमीनार की प्रबंध व्यवस्था का संचालन किया। इस अवसर पर आयोग के रजिस्ट्रार सुनील कुमार चैधरी, महिला एवं बाल विकास विभाग में करनाल की जिला अधिकारी रजनी पसरीचा, अकादमी के डीएसपी राज कुमार, विवेक चैधरी, अकादमी के उप जिला न्यायवादी रामपाल व श्री अजय कुमार सहित अकादमी के प्रशिक्षक, मीडिया कर्मी भी उपस्थित रहे।

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