लालच और डर…आठ माह में 300 लोगों ने गंवाए 50 करोड़, इन तरीकों से चपत लगा रहे ठग
साइबर ठगी बीते 15 सालों से भी ज्यादा समय से प्रचलन में है। एक जमाना था जब बढ़ते ई-मेल के चलन में नाइजीरिया के ठगों ने लोगों को ई-मेल फिशिंग में फंसाना शुरू किया।
लालच और डर… विशेषज्ञ साइबर ठगी के यही दो कारण मानते हैं। इन्हीं दोनों कारणों से इस साल अब तक राजधानी के भी करीब 300 लोगों ने अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को ठगों के हाथों में थमा दिया। साइबर ठग सैन्य अफसरों से लेकर डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक सबको निशाना बना रहे हैं। अब तक दर्ज हुए मामलों में ठगों ने इन लोगों से 50 करोड़ रुपये से ज्यादा ठगे हैं। हालांकि, कुछेक बड़े मामलों में एसटीएफ, जिला पुलिस और साइबर पुलिस आरोपियों तक पहुंची भी है। इस साल अब तक तकरीबन 70 से ज्यादा ठगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
दरअसल, साइबर ठगी बीते 15 सालों से भी ज्यादा समय से प्रचलन में है। एक जमाना था जब बढ़ते ई-मेल के चलन में नाइजीरिया के ठगों ने लोगों को ई-मेल फिशिंग में फंसाना शुरू किया। लंबे समय तक चले इस फ्रॉड का नाम ही नाइजीरियन ठग पड़ गया, लेकिन जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी बढ़ी तो ठगों ने अपने तरीके भी बदल दिए। अब ठग एआई तक का इस्तेमाल ठगी के लिए कर रहे हैं। ठगी की एक विधा डीप फेक से भी बड़ी संख्या में लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। हैरत की बात तो तब है जब इतने प्रचार प्रसार के बाद भी लोग आसानी से इनका शिकार बन रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार अब तक के मामलों में सिर्फ दो ही वजहें सामने आई हैं, वह हैं डर और लालच। कोई घर बैठे कमाई के लालच में ठगी का शिकार हो रहा है तो किसी को पार्सल एयरपोर्ट पर पकड़े जाने का डर दिखाया जा रहा है।
साइबर थाना देहरादून में ही इस साल 59 मुकदमे दर्ज
वर्ष 2015 में देहरादून में साइबर थाने की स्थापना हुई थी। उस वक्त सात लाख रुपये से अधिक के मामलों को साइबर थाने में दर्ज किया जाता था। कुछ समय पहले तक यहां दर्ज होने वाले मुकदमों की संख्या बमुश्किल 15 से 20 रहती थी, लेकिन पिछले साल इस सीमा को 10 लाख रुपये कर दिया गया। साइबर ठगी कितनी बढ़ी, इसका अंदाजा यहां दर्ज होने वाले मुकदमों से ही लगाया जा सकता है। इस साल सबसे ज्यादा अब तक 59 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं। इसमें 50 लाख रुपये से एक करोड़ से भी अधिक की राशि लोगों से ठगी गई है। औसतन प्रति व्यक्ति ठगी की रकम 20 लाख भी रखी जाए तो यह रकम करीब 30 करोड़ रुपये होती है। जबकि, पिछले साल पूरे साल में 50 मुकदमे दर्ज हुए थे। अभी इस वर्ष के चार महीने शेष हैं।
डिजिटल गिरफ्तारी नया तरीका
साइबर ठगों का डिजिटल गिरफ्तारी नया तरीका है। यह तरीका डर का खेल है। किसी भी व्यक्ति को उसका पार्सल, परिचितों के अपराध में फंसने आदि का डर दिखाया जाता है। इसके बाद उनसे वीडियो कॉल पर वर्दी पहना एक व्यक्ति खुद को सीबीआई या अन्य जांच एजेंसी का अधिकारी बताते हुए बात करता है। इसके बाद मामले में बचने के लिए उनसे लाखों रुपये रिश्वत के रूप में लिए जाते हैं। बचने के लिए लोग आसानी से जीवनभर की मेहनत की कमाई साइबर ठगों के खातों में ट्रांसफर भी कर देते हैं।
ये हैं कुछ अन्य तरीके
– फिशिंग : ठग नकली ईमेल या संदेश भेजते हैं, जो वैध स्रोत से प्रतीत होते हैं। संवेदनशील जानकारी जैसे कि पासवर्ड या क्रेडिट कार्ड नंबर मांगते हैं।
– सोशल इंजीनियरिंग : मनोवैज्ञानिक तरीकों से पीड़ितों को धोखा देते हैं। उन्हें गोपनीय जानकारी देने या कुछ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करते हैं।
– नकली वेबसाइट्स : वैध वेबसाइट्स की नकल करते हैं, लॉगिन क्रेडेंशियल या वित्तीय जानकारी चोरी करते हैं।
– ऑनलाइन नीलामी धोखाधड़ी : साइबर ठग ऑनलाइन मार्केटप्लेस पर विक्रेता बनते हैं। गैर-मौजूद या कम-मूल्य की वस्तुओं के लिए भुगतान लेते हैं।
– रोमांस स्कैम : नकली रिश्ते बनाते हैं, विश्वास हासिल करने से पहले पैसे या व्यक्तिगत जानकारी मांगते हैं।
– निवेश स्कैम : असामान्य रूप से उच्च रिटर्न का वादा करते हैं, अक्सर नकली कंपनियों या योजनाओं के साथ।
– मैलवेयर और रैनसमवेयर : डिवाइस तक पहुंच प्राप्त करने या उन्हें लॉक करने के लिए दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं। बहाली के लिए भुगतान मांगते हैं।
सिम स्वैपिंग : पीड़ित के फोन नंबर को नए सिम कार्ड में स्थानांतरित करते हैं। उनके खातों और व्यक्तिगत जानकारी तक पहुंच प्राप्त करते हैं।
– विशिंग (वॉइस फिशिंग) : फोन कॉल करते हैं। संवेदनशील जानकारी चोरी करने के लिए वैध संगठन से होने का दावा करते हैं।
– स्मिशिंग (एसएमएस फिशिंग) : नकली लिंक या प्रॉम्प्ट के साथ संदेश भेजते हैं, गोपनीय जानकारी देने के लिए प्रेरित करते हैं।
– ऑनलाइन कमाई : टास्क पूरे करने पर थोड़ी कमाई कराई जाती है। इसके बाद बड़े टास्क के लिए लाखों रुपये अपने खातों में जमा करा लिए जाते हैं।
पकड़े तो जाते हैं, मगर नहीं होती रिकवरी
पुलिस साइबर ठगों को गिरफ्तार तो करती है, लेकिन उनसे कोई रिकवरी नहीं करा पाती। यानी आपकी जीवनभर की कमाई ठगों के पास चली तो जाती है, लेकिन इसे वापस पाने का कोई तरीका नहीं है। इसका कारण है कि ठग पहले ही इस रकम को इधर-उधर खर्च कर देते हैं। जब तक पुलिस इन तक पहुंचती है, तब तक सारी रकम खत्म हो जाती है।