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देहरादून मे दुर्गा पूजा की धूम, हर साल सजता है माँ का दरबार

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देहरादून की दुर्गाबाड़ी में हर साल सजता है मां का दरबार: बिंदाल पुलिस चौकी के सामने मौजूद देहरादून दुर्गाबाड़ी में आज भी ONGC में काम करने वाले तमाम बंगाली समुदाय के लोगों द्वारा दुर्गाबाड़ी में से शारदीय नवरात्रों के छठवें दिन से एक भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है. पूजा में बिहार, उत्तर प्रदेश सहित उत्तराखंड के लोग भी बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं

ऐतिहासिक कलाकृतियों की थीम से सजाया गया दुर्गा पूजा का दरबार: देहरादून दुर्गाबाड़ी संस्था के सदस्य मनीष मलिक ने बताया कि इस बार दुर्गा पूजा अनुष्ठान की थीम को कुछ पुरानी सभ्यताओं की कलाकृतियां से आच्छादित किया गया है. जिसमें मेसोपोटामिया सभ्यता और रत्नागिरी की पहाड़ियों में मिली कलाकृतियों को दर्शाया गया है. उन्होंने पंडाल में लगे तमाम ऐतिहासिक सभ्यताओं से जुड़ी कलाकृतियां के बारे में बताते हुए कहा कि सनातन धर्म और इसमें होने वाली पारंपरिक पूजन के संबंध में जो कुछ प्रमाण इतिहास में मिले हैं, उनको संजोकर इस प्रांगण में लगाया गया है.देहरादून में रविंद्र नाथ टैगोर के आवास पर दुर्गा पूजा:

दुर्गाबाड़ी की स्थापना होने के बाद सबसे पहले सवाल आया कि दुर्गा पूजा कहां पर आयोजित की जाएगी. जिससे फैसला लिया गया कि राष्ट्रगान रचयिता रविंद्र नाथ टैगोर, जिनका आवास देहरादून में टैगोर विला के नाम से मौजूद है, वहां पर दुर्गा पूजा आयोजित होगी. साल 1956 से लेकर साल 1971 तक टैगोर विला में ही बंगाली समुदाय के लोगों द्वारा दुर्गा पूजा की गई, लेकिन इसके बाद टैगोर विला के बिक्री हो जाने के बाद देहरादून में मौजूद बंगाली समुदाय के लोगों द्वारा गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक भूमि खरीदी गई और वहां पर दुर्गाबाड़ी की स्थापना कर दुर्गा पूजा शुरू की.देहरादून में रविंद्र नाथ टैगोर के आवास पर दुर्गा पूजा:

दुर्गाबाड़ी की स्थापना होने के बाद सबसे पहले सवाल आया कि दुर्गा पूजा कहां पर आयोजित की जाएगी. जिससे फैसला लिया गया कि राष्ट्रगान रचयिता रविंद्र नाथ टैगोर, जिनका आवास देहरादून में टैगोर विला के नाम से मौजूद है, वहां पर दुर्गा पूजा आयोजित होगी. साल 1956 से लेकर साल 1971 तक टैगोर विला में ही बंगाली समुदाय के लोगों द्वारा दुर्गा पूजा की गई, लेकिन इसके बाद टैगोर विला के बिक्री हो जाने के बाद देहरादून में मौजूद बंगाली समुदाय के लोगों द्वारा गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक भूमि खरीदी गई और वहां पर दुर्गाबाड़ी की स्थापना कर दुर्गा पूजा शुरू की.