Home उत्तराखण्ड लॉकडाउन में दर्द मजदूरों का, पूजा कोठियाल की जुबानी एक कहानी,

लॉकडाउन में दर्द मजदूरों का, पूजा कोठियाल की जुबानी एक कहानी,

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लॉकडाउन, दर्द मजदूरों का, पूजा कोठियाल की जुबानी एक कहानी, एक छोटा सा 10/ 10 का कमरा , जिसके छत पर सीलन और कमरे में ही किचन ,वो भी छोटा सा। किचन जैसा आप सोच रहे हो वैसा बिल्कुल नहीं एक बार चूल्हा, कुछ बर्तन और दो चार बाल्टी हैं जिनमें आधा पानी भरा हुआ था ।अक्सर बाल्टी में पानी भर के रखा जाता है, क्योंकि पानी कई – कई दिनों तक नहीं आता। दीवारों का पेंट पूरा उखड़ा हुआ था। कमरे का फर्श भी जगह-जगह पर टूटा हुआ था। यह कमरा उमेश और हरदा का है। वो यहां अपनी छोटी सी बच्ची के साथ रहते हैं जिसको प्यार से छुटकी पुकारते है। उनका यह घर जगमगाते शहर से दूर की बस्ती में है । बस्तियां हर बड़े शहर की एक सच्चाई बन गई है । बस्ती में घर बहुत सटे हुए है ,नालियां खुली जिसमें से गन्दा पानी निकाल कर गली गली होते हुए पास के नाले में बहता है और पूरे बस्ती में  दो या तीन ही शौचालय है।जहां हर सुबह एक लंबी कतार होती है । उमेश और हरदा भी यहां 2 साल पहले ही गांव से दूर शहर  में रोटी कमाने की आश लेके आए थे । उमेश  दिहाड़ी मजदूर है और हरदा लोगो के घरों में बर्तन धोने का काम करती है ।उनकी जिंदगी बहुत अच्छी तो नहीं थी मगर दोनों मिल कर दो वक्त की रोटी कमा लेते थे।
पर एक दिन सारा शहर बंद हो गया, शहर की रोड खाली हो गई,  लग रहा था  मानो वक्त कहीं थम सा गया है ,या फिर शहर लूट लिया गया हो इतना फिका लग रहा था ।लोग डरे थे । सब चार दिवारी में कैद हो गए थे।तो ऐसा क्या हो गया कि जिस शहर को कोई नहीं रोक पाया आज इतना  सूना पड़ा है ।

सुना है कोई नई  छुआछूत की बीमारी आई है जिसने पूरे दुनिया में हाहा कार मचा रखा है ।सरकार ने सारे काम बंद करवा दिए और सब को घर में ही रहने के आदेश दे दिए है ।समाज के सारे वर्ग का डर अब अलग अलग है ….पर सबसे ज्यादा डरा गरीब था  वो अगर बाहर जाता तोह बीमारी से मरता नहीं जाता तोह भूख से ।

उमेश को काम पर आने के लिए उसके सेठ ने मना कर दिया था पर ऊपर वाले का शुक्र है को हरदा अभी भी काम पर थी । खाने का बंदोबस्त हो ही रहा था जब तक हरदा काम कर रही थी।

एक सुबह जब हरदा सुबह के वक्त काम करने के लिए गई तो गेट बंद था । उसने आवाज लगाई

चाचा – चाचा …!

चाचा ने गेट पर लगी एक छोटी खिड़की खोली और बोले “क्या बात है बेटी ”
“आज गेट बंद काहे है ?”

” वो बीमारी की वजह से आज से किसी बाहर वाले का अंदर आना मना है ”

हरदा मायूस और स्तब्ध थी उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या होगा , फिर उसे अपने एक महीने के पगार का ध्यान आया

“चाचा उ हमरा पगार है एक महीना का उ मिल जाता तो ”

“बेटा उ हम कैसे कुछ बोल सकता हूं हमका तो जो बोला गया हम वहीं कर रहा हूं ”

हरदा कुछ देर बुद सी खड़ी हो गई और फिर बोली “उ मैम साहब से बात हो जाता तो या हमका एक बार मिलने दो हम पगार ले के वापस आ जाउंगी ”

“नहीं बेटा तुम कुछ दिन बाद आना हमरी नौकरी खतरे में आ जाएगी अगर हम तुमको अबी अंदर जाने दिया तो ” और फिर चाचा ने खिड़की भी बंद कर दी ।

हरदा उस बंद खिड़की को कही देर तक एक टक निहारती रही और फिर वापस घर को लौट आई । रास्ते में उसके मन में बहुत सवाल उठ रहे थे… अब क्या खाएंगे ?
आगे क्या होगा ?
और ना जाने क्या क्या ….

जब हरदा घर पहुंची तो उमेश दरवाजे पर बैठे बिडी पी रहा था । हरदा को देख उमेश खड़ा हो गया और हरदा को पूछा
“बहुत जल्दी वापस आ गई ! का हुआ?”
हरदा बिना कुछ जवाब दिए अंदर कमरे कि और बढ़ गई
“का हुआ कुछ बोलोगी भी !”थोड़ा आवाज में जोर देते हुए उमेश ने पूछा
“हमरी भी नौकरी चली गई आज गेट से ही वापस कर दिए हमका”और हरदा जोर जोर से रोने लगीं फिर आगे जोड़ते हुए बोली
का होगा अब ?
उमेश भी ये सुन कर स्तब्ध रह गया और गमछा कंदे से निकाल कर सर पर लपेटने हुए बोला
पता नहीं का होगा अब ..
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उमेश और हरदा अपने कमरे में बैठे थे और बच्ची बाहर गली में खेल रही थी।
हरदा ” कुछ पता लगाए आप कितना दिन बंद रहेगा काम ” (देसी लहजे में)

उमेश ” कैसे पता लगाएंगे ? काम पर जाता तोह खबर मिलता ,उ लालू के पास बड़का वाला फोन है उसमे पता लगता।अब बाहर जाने पर पुलिस पकड़  कर पिटाई कर रही है ।”

“काम ना खुला तोह भूखे मरना पड़ेगा “हरदा सर पर हाथ रख के बोली

“कितने दिन का राशन बचा है घर में ?” उमेश ने पूछा

“हफ्ते दो हफ्ते का ”

साहब ने हामका एक महीने का पगार भी नहीं ना दिया ,लालू के घर जा के पूछना पड़ेगा उ कैसे चलाएगा घर और अगर उ जायेगा पगार मांगने तो मैं भी चला जाऊंगा उ के साथ ही  ।

हमरी मैम्म साहब ने भी तोह नहीं ना दी  जब पिछली बार में गई थी काम पर तो गेट से ही वापस कर दी ।

का करे बताओ बाहर जा नहीं सकते ।कुछ दिन रुक जाते है फिर देखते है। उमेश दरवाजे की तरफ जाते हुए बोला ।फिर दरवाजे पर खड़े हो कर आवाज लगाने लगा “छुटकी इधर आजा …..इधर आ कर खेल ”

छुटकी अपने नन्हे क़दमों से उमेश की तरफ बड़ी  बोली ” काहे बाबा ? उहा हमरी सहेली है उ के साथ  काहे नहीं खेलने देते ?”

नहीं ! आजकल उधर बड़का भूत आया है और छोटा बच्चा का पकड़ रहा है .. छुटकी को पकड़ लिया तो ,बाबा का करेगा…. तो अब से छुटकी बाबा के पास ही खेलेगी….और छुटकी को गोद में उठा लिया ।

क्युकी छुटकी को उमेश जाने नहीं दे रहा था तो वो उदास हो गई थी ,ये देख के हरदा बोलती है

“काहे नहीं जाने देते ?”

“पता नहीं ना है तुमको छुआछूत का बीमारी है कौन जाने किस किस को होगा ।”

और हम जो रोज सुबह पानी का इतना लंबा लाइन मा भीड़ में खड़ा होती हूं उ से नहीं होगा,लेट्रिंग का लाइन से ….?
कैसे बचाएंगे बोलो ?

उमेश चुप हो गया और उसने छुटकी को खेलने को भेज दिया ।

तभी मकान मालिक आ गया ।
” नमस्ते मालिक ” उमेश  दरवाजे से बाहर आते हुए बोला

“नमस्ते नमस्ते !”

इससे पहले कि मकान मालिक कुछ बोलता उमेश ने बोला ” मालिक उ पगार नहीं मिला,जैसे ही मिलेगा आपका किराया चुका दूंगा ”

“तुम्हारा हर महीने का नाटक है और अब तो काम भी  छूट गया ,और तुमको एक ओर बहाना मिल गया ” मकान मालिक ने गुस्से से कहा ।

उमेश ने हाथ जोड़ते हुए”नहीं – नहीं मालिक कहीं से जुगाड कर के आपका किराया चुका दूंगा” ।

मकान मालिक उंगली से इशारा करते हुए”एक हफ्ते का वक़्त दे रहा हूं अगर भाड़ा नहीं चुका तो सामान फेंक दूंगा बाहर ”

“जी मालिक ”

मकान मालिक वहा से आगे वाले कमरे की तरफ बढ़ा, उस गली में सारे कमरे उसी के भाड़े पर थे ।
उमेश कमरे के अंदर गया पर अब भी मकान मालिक की आवाज उसके कानों में पड़ रही थी ।

उमेश और हरदा हताश से बैठे रह गए …. इस सोच  में की आगे क्या होगा।

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