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यहाँ एंबुलेंस पूरी तरह से हो गई कबाड़ में तब्दील, नीलामी को लेकर ऐसे हो रहें प्रयास

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सरकारी संपत्ति को कैसे ठिकाना लगाया जाता है. इसकी हकीकत आपको चंदरनगर स्थित 108 एंबुलेंस सेवा मुख्यालय के ठीक सामने मौजूद दर्जनों की संख्या में जंग खा रहीं पुराने एंबुलेंस को देखने के बाद दिख जाएगी.

आज और कल का बहाना बनाते हुए स्वास्थ्य विभाग को पांच वर्ष पूरे कर दिए हैं. लेकिन, अब तक इन एंबुलेंस को सेल आउट तक नहीं किया जा सका. नतीजतन, ये एंबुलेंस अब पूरी तरह कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं. इससे न केवल सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा है. बल्कि, बताया तो ये भी जा रहा है कि इन एंबुलेंस की कीमत अब कबाड़ में भी लगनी मुश्किल है. इस सबके बीच एक बार फिर से इन एंबुलेंस को दोबारा सेल आउट करने के प्रयास किए जा रहे हैं. इसकी वजह ये है कि जहां पर ये एंबुलेंस सड़ चुकी हैं. वहां पर आरटीपीसीआर लैब बननी है. इस वजह से इस स्थान को खाली कराया जरूरी हो रहा है.

5 वर्षों से राग अलाप रहा स्वास्थ्य विभाग
उत्तराखंड गठन के करीब 24 वर्ष पूरे हो चुके है. राज्यवासियों को उम्मीद थी कि नए राज्य गठन के साथ ही आम लोगों के सपनों को पंख लगेंगे. स्वास्थ्य में भी बदलाव होगा. जनता से वसूले जाने वाले टैक्स का सही इस्तेमाल होगा. लेकिन, चंदरनगर स्थित 108 एंबुलेंस सेवा के हेडक्वार्टर के सामने पूरी तरह सड़ चुकी करीब चार दर्जन से ज्यादा एंबुलेंस की पिछले 5 वर्षों से किसी को फिक्र नहीं. एक नहीं, कई बार विभाग ने इन पुरानी हो चुकी एंबुलेंस को सेल आउट कर नई एंबुलेंस खरीदने के लिए बयानबाजियां की. लेकिन, एक नहीं, इन एंबुलेंस को खड़े-खड़े पूरे पांच वर्ष बीत गए हैं. अब इनकी हालत ये है कि इनका कोई तोल और मोल तक नहीं रहा. इन एंबुलेंस के अंदर कीड़े-मकोड़ोंं के साथ घासफूस उग आए हैं. इनका डेंट-पेंट पूरी तरह उखड़ चुका है.

5 वर्षों से राग अलाप रहा स्वास्थ्य विभाग
उत्तराखंड गठन के करीब 24 वर्ष पूरे हो चुके है. राज्यवासियों को उम्मीद थी कि नए राज्य गठन के साथ ही आम लोगों के सपनों को पंख लगेंगे. स्वास्थ्य में भी बदलाव होगा. जनता से वसूले जाने वाले टैक्स का सही इस्तेमाल होगा. लेकिन, चंदरनगर स्थित 108 एंबुलेंस सेवा के हेडक्वार्टर के सामने पूरी तरह सड़ चुकी करीब चार दर्जन से ज्यादा एंबुलेंस की पिछले 5 वर्षों से किसी को फिक्र नहीं. एक नहीं, कई बार विभाग ने इन पुरानी हो चुकी एंबुलेंस को सेल आउट कर नई एंबुलेंस खरीदने के लिए बयानबाजियां की. लेकिन, एक नहीं, इन एंबुलेंस को खड़े-खड़े पूरे पांच वर्ष बीत गए हैं. अब इनकी हालत ये है कि इनका कोई तोल और मोल तक नहीं रहा. इन एंबुलेंस के अंदर कीड़े-मकोड़ोंं के साथ घासफूस उग आए हैं. इनका डेंट-पेंट पूरी तरह उखड़ चुका है.

.तो विभाग भी भूल जाता
बहरहाल, इस सबके बीच अब बताया जा रहा है कि एक बार फिर से विभाग ने इनको कबाड़ में सेल आउट करने के प्रयास किए हैं. खुद डीजी हेल्थ डॉ. तारा आर्या का कहना है कि इसके लिए उन्होंने आदेश भी जारी कर दिए हैं. बताया जा रहा है कि जिस स्थान पर ये एंबुलेंस सड़ चुकी हैं, वहां पर आरटी-पीसीआर की लैब बनाने की तैयारी है. ऐसे में इस स्थान को खाली कराने की जुगत में जुटा विभाग अब यहां से इन एंबुलेंस को भी हटाना चाहती हैं. अंदाजा लगाया जा सकता है कि कारणवश, यहां पर लैब बनाने की तैयारी न होती, तो इन एंबुलेंस का केवल ढांचा ही नजर आता.

इस जगह बनेगी आरटीपीसीआर लैब
दून के सीएमओ ने इस बात की पुष्टि की कि चंदरनगर में जिस स्थान पर एंबुलेंस खड़ी हैं. वहां पर आरटी-पीसीआर की लैब बननी प्रस्तावित है. बताया कि कोरोना के दौरान दून में आरटी-पीसीआर लैब की काफी जरूरत महसूस की गई. दून मेडिकल कॉलेज पर ज्यादा लोड देखने को मिला. ऐसे में आरटी-पीसीआर लैब बनाने की प्रस्ताव है.

सड़ चुकीं एंबुलेंस पर एक नजर
-ये वे एंबुलेंस हैं, जो 2008 से 2016 तक सड़कों पर मरीजों को लेकर दौड़ती रहीं.
-इन एंबुलेंस ने साढ़े पांच से लेकर 6 लाख तक किलोमीटर तक का सफर किया है तय.
-ये एंबुलेंस पिछले पांच वर्षों से इसी स्थान पर जंग खाकर पूरी तरह सड़ चुकी हैं.
-विभाग का दावा, कई बार नीलामी के लिए प्रयास किए गए, लेकिन नहीं मिल पाई सफलता.

नीलामी के भी प्रयास हुए असफल
बताया जा रहा है कि विभाग ने इन एंबुलेंस की नीलामी के लिए कई बार प्रयास किए. लेकिन, विभाग को इसमें सफलता नहीं मिली. ऐसे में अब जब एंबुलेंस पूरी तरह सड़ चुकी हैं. जानकार बताते हैं कि शायद ही विभाग को नीलामी करने के बाद उम्मीद के मुताबिक कोई कीमत मिल सके.

दून समेत स्टेट में एंबुलेंस
कुल एंबुलेंस-272
दून में मौजूद-32
दून में केकेएस–17

एंबुलेंस की जल्द नीलामी किए जाने के लिए आदेश दिए गए हैं. इसके अलावा आरटीओ में भी कुछ फॉर्मेलिटीज पूरी की जानी हैं. कुछ मिलाकर अब इन एंबुलेंस की नीलामी के लिए गंभीरता से प्रयास शुरू कर दिए गए हैं.
डॉ. तारा आर्या, डीजी हेल्थ