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बिना मैदान दिव्यांग खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बना रहे पहचान, रैंप और सिंथेटिक ट्रैक तक नहीं

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बिना मैदान दिव्यांग खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बना रहे पहचान, रैंप और सिंथेटिक ट्रैक तक नहीं

प्रदेश के 300 दिव्यांग खिलाड़ियों में से 50 खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय पैरा खेलों, 200 राष्ट्रीय, 50 राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग कर चुके हैं। साथ ही दर्जनभर से अधिक पदक जीत चुके हैं।

बिना मैदान और सुविधाओं के उत्तराखंड के दिव्यांग खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी चमक बिखेर रहे हैं। प्रदेश के करीब 300 खिलाड़ी जिला से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपने हुनर से उत्तराखंड समेत देश का नाम रोशन कर रहे हैं। उत्तराखंड के मैदानों में सुविधाएं नहीं होने से दिव्यांग खिलाड़ियों को अभ्यास के लिए दूसरे राज्यों का सफर करना पड़ रहा है।

प्रदेश के 300 दिव्यांग खिलाड़ियों में से 50 खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय पैरा खेलों, 200 राष्ट्रीय, 50 राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग कर चुके हैं। साथ ही दर्जनभर से अधिक पदक जीत चुके हैं। दिव्यांग खिलाड़ियों का कहना है कि प्रदेशभर में कहीं भी ऐसा मैदान नहीं है जहां उन्हें रैंप, रेलिंग जैसी सुविधाएं मिलें। इतना ही नहीं महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज को छोड़कर किसी भी मैदान में सिंथेटिक ट्रैक तक नहीं हैं। आलम यह है कि राजधानी दून के परेड मैदान में बने बहुउद्देश्यीय हॉल में भी रैंप, रेलिंग जैसी सुविधाएं नहीं हैं। दिव्यांग खिलाड़ियों को एथलेटिक्स में अभ्यास करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। जबकि, स्पोर्ट्स कॉलेज का मैदान भी सिर्फ कॉलेज के छात्रों के लिए है।

खेल आयोजनों के लिए सरकार नहीं करती मदद
पैरा खिलाड़ियों का आरोप है कि सरकार की ओर से किसी प्रकार की खेल गतिविधियां का आयोजन उनके लिए नहीं किया जाता। इतना ही नहीं पैरालंपिक एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड की ओर से आयोजित होने वाली गतिविधियों में भी सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं की जाती। एसोसिएशन के समन्वयक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स, पटियाला के कोच प्रेम कुमार ने बताया, एसोसिएशन की ओर से ही खेल प्रतियोगिता आयोजित की जाती है।

70-80 घंटे का सफर कर पहुंच रहे दूसरे राज्य
कोच प्रेम कुमार ने कहा, अभ्यास के लिए प्रदेश के दूर दराज व सीमांत इलाकों से आने वाले दिव्यांग खिलाड़ी 07-08 घंटे का सफर कर दूसरे राज्य पहुंच रहे हैं। इस दौरान दिव्यांग खिलाड़ियों को परेशानी का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर प्रदेश में ही दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए मैदान तैयार किया जाए तो उन्हें बड़ी राहत मिलेगी।

खिलाड़ियों को खेल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए हर संभव कार्य किए जा रहे हैं। रही बात मैदानों में रैंप, रेलिंग व अन्य सुविधाओं की तो इसे एक बार दिखा लिया जाएगा। जहां भी कमी मिलेगी वहां सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
– जितेंद्र सोनकर, निदेशक, खेल विभाग