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अजय टम्टा के मंत्री बनने से उत्तराखंड की राजनीति में ये पड़ेगा असर, साधा जातीय संतुलन

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तीसरी बार की मोदी सरकार फिलहाल उत्तराखण्ड में कोई नया पावर सेंटर बनाने के मूड में नहीं दिख रही है।उत्तराखण्ड से केंद्रीय मन्त्रिमण्डल में सांसद व पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री अजय टम्टा को सलेक्ट कर भाजपा हाईकमान ने जातीय समीकरणों को साधते हुए प्रबल दावेदार अनिल बलूनी, त्रिवेंद्र सिंह रावत व अजय भट्ट के लिए लग रही अटकलों को एक सिरे से खारिज कर दिया।

मौजूदा समय में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीते अजय टम्टा दलित वर्ग से सीएम धामी व प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट क्रमशः राजपूत व ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा हाईकमान ने टम्टा को आगे कर जातीय समीकरणों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है।

भाजपा हाईकमान ने उत्तराखण्ड में चुना संतुलन का रास्ता।

दलित, ब्राह्मण व ठाकुर के बीच बनाया संतुलन

मुख्यमंत्री ठाकुर,प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण,विधान सभा अध्यक्ष ब्राह्मण,नरेश बंसल बनिया तो कल्पना सैनी महिला और ओबीसी समुदाय से हैं।

अनुसूचित जाति के अजय टम्टा को मंत्री बना कर पार्टी जातिगत समीकरण को साधने का काम किया है।

गौरतलब है कि चुनाव प्रचार के दौरान राजनाथ सिंह ने गोपेश्वर की जनसभा में अनिल बलूनी को केंद्र में मंत्री बनाने के साफ संकेत दिए थे। कोटद्वार की जनसभा में अमित शाह ने भी अनिल बलूनी के समर्थन में विशेष उत्साह दिखाया था।

इससे यह लग रहा था कि मोदी कैबिनेट में इस बार अनिल बलूनी को विशेष जगह मिलेगी। हालांकि,बतौर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत व बम्पर अंतर से जीते निवर्तमान केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट भी प्रमुख दावेदारों में शामिल थे। लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों ने 2014 में मोदी सरकार में कपड़ा राज्यमंत्री रहे अजय टम्टा पर एक बार फिर भरोसा जता गुटीय जंग पर पानी फेर दिया।

यहां यह बात भी खुलकर सामने आ रही है कि पीएम मोदी उत्तराखण्ड भाजपा में कोई नया शक्तिशाली राजनीतिक ध्रुव खड़ा नहीं करना चाहते। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के बीच खटास की खबरें भी दिल्ली तक पहुंच रही थी। केंद्रीय नेतृत्व को यह फीडबैक था कि पौड़ी व हरिद्वार से जीते सांसदों में से किसी एक को मंत्री बनाने से प्रदेश में एक नया पावर सेंटर बनेगा।

और वर्चस्व की जंग में भाजपा के अंदर राजनीतिक अस्थिरता का नया दौर शुरू हो सकता है। इधर, चुनाव जीतने के बाद दिल्ली में अजय टम्टा व अजय भट्ट ने सीएम धामी से मुलाकात कर अपने लिए फील्डिंग सजाने में त्वरित पहल की थी। लेकिन सांसद का चुनाव जीते अनिल बलूनी व त्रिवेंद्र रावत की सीएम धामी से मुलाकात नहीं होने पर पार्टी की अंदरूनी राजनीति में अलग ही चर्चाएं जोर पकड़ गई थी।

पूर्व केंद्रीय मंत्री टम्टा का किसी गट विशेष की राजनीति में बंध कर नहीं रहना भी उनके हक में गया। बहरहाल, मोदी कैबिनेट में मंत्री पद से वंचित रह गए भाजपा सांसदों को भविष्य में होने वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार तक इंतजार करना पड़ेगा। टम्टा के मंत्री बनने से भाजपा ने खिसक रहे दलित मतों को थामने की कोशिश के साथ सीएम धामी को भी तोहफे में फ्री हैंड व सुकून के पल भी दे दिये…

हालांकि गढ़वाल के किसी सांसद को मौका ना देकर उपेक्षा का आरोप लग रहें हैं उत्तराखंड में अभी तक इतिहास रहा हैं कि अगर बीजेपी का प्रदेश का मुख्यमंत्री गढ़वाल से हुआ तो केंद्र में मंत्री कुमाऊं से बनता रहा हैं त्रिवेंद्र सीएम रहें तो पहले अजय टमटा और अजय भट्ट कुमाऊं से मंत्री बने हालांकि त्रिवेंद्र के मुख्यमंत्री रहते गढ़वाल से रमेश पोखरियाल निशंक भी मंत्री रहें हैं  वर्तमान में कुमाऊं से सीएम हैं ऐसे में गढ़वाल से मंत्री बनाने की उम्मीद थी