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चंड मुंड और रक्तबीज के संहार के लिए दुर्गा ने रखा था चंडी का अवतार

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धरती पर जब जब पाप बड़ा तब तब मां दुर्गा ने विभिन्न अवतार धारण किए इन्हीं सब अवतारों में मां चंडिका का अवतार दुर्गा माता ने जब लिया तो उन्होंने चंड मुंड और रक्तबीज राक्षसों का विनाश किया और उसके बाद उग्र रूप धारण कर पूरी धरती में त्राहिमाम त्राहिमाम मच गया मां के रूप को शांत करने के लिए देवता गणों ने भगवान भोले शंकर से प्रार्थना की और भोले शंकर की प्रार्थना के बाद मां दुर्गा ने अपने चंडी अवतार को शांत किया जिसके बाद मां दुर्गा के भक्त मां चंडिका की पूजा करने लगे ।
जोशीमठ के नरसिंह मंदिर और रविग्राम गांव में मां दुर्गा के चंडी अवतार की दो दिवसीय पूजा आज से शुरू हो गई है मां दुर्गा के इस अवतार की पूजा मां चंडिका को शांत करने के लिए की जाती है बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि मान्यता है कि जब मां चंडिका ने राक्षसों का संघार किया था तब मां दुर्गा बहुत क्रोधित हो गई थी जिसके बाद देवता गणों ने मां दुर्गा को अपने मूल स्वरूप में आने की प्रार्थना की और देवताओं की बात मानकर मां दुर्गा ने चंडिका का रूप छोड़कर पुनः दुर्गा रूप में अपने भक्तों और देवताओं को दर्शन देने लगी।
मां दुर्गा को शांत करने के लिए स्थानीय लोग और मां दुर्गा के भक्त मां चंडिका के मंदिर में घी के दिए जलाते हैं और मां चंडिका से धरती की खुशहाली और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं रविग्राम गांव के देव पुजारी समिति के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद डिमरी बताते हैं कि जो भक्त सच्चे मन से मां चंडिका के मंदिर में 24 घंटे तक घी के दिए जलाता है मां चंडिका उसकी मनोकामना पूर्ण करती है ।
इससे पहले उच्च हिमालय क्षेत्रों में होने वाले ब्रह्म कमल को मां चंडिका के दरबार में लाया जाता है और मां चंडिका के दरबार को इन सुंदर सुंदर फूलों से सजाया जाता है मां चंडिका के मंदिर को सजाने के बाद मां चंडिका की विशाल मूर्ति स्थापित की जाती है और उसके बाद मां चंडिका के वैदिक मंत्रोच्चारण और प्रार्थना भजन कीर्तन करके मां चंडिका को प्रसन्न किया जाता है

मां चंडिका के मंदिर में स्थानीय महिलाएं दूर-दूर से पूछती हैं और मां चंडिका के गीत गाकर भजन कीर्तन करके मां चंडिका से अपने परिवार और पति की लंबी उम्र की कामना भी करते हैं मान्यता है कि जो भक्त आज के दिन मां चंडिका के मंदिर में सच्चे मन से पहुंचता है और मां चंडिका की पूजा-अर्चना करता है मां उस पर खुश होकर मनचाहा वरदान देती है इसलिए महिलाएं विशेष रूप से इस मेले का इंतजार करती है और मंदिर में पहुंचकर घी के दिए जलाते हैं घी के दिए को रिंगा ल से बनी हुई टोकरी में जो के ऊपर रखा जाता है और रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है जिसे अखंड ज्योति नाम दिया जाता है इस दौरान महिलाएं सज धज कर मंदिर में पहुंचती है और मां के दरबार में भजन कीर्तन करती है

एक और मान्यता के अनुसार जब उच्च हिमालय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल लाया जाता है तो मैदानी क्षेत्रों में ठंड बढ़ने शुरू हो जाती है यानी कि आज से पहाड़ों में ठंड बढ़ने शुरू हो जाएगी और बर्फबारी जैसी स्थिति आज के बाद ही पहाड़ों में पैदा हो जाती है जैसे-जैसे ब्रह्मकमल तोड़कर निचले इलाकों में लाया जाता है तो पहाड़ी क्षेत्रों में अब बारिश शुरु हो जाती है।
बाइट भुवन चंद्र उनियाल धर्म अधिकारी बद्रीनाथ धाम

देवभूमि उत्तराखंड में इन्हीं मान्यताओं के अनुसार कई देवी देवता निवास करते हैं जिनकी अपनी अलग मान्यता होती है इसलिए तो देव भूमि उत्तराखंड को देवताओं की भूमि कहां गया है यहां चारों धाम के साथ साथ मां दुर्गा के कई सिद्ध पीठ विराजमान हैं जो अपनी मान्यताओं के अनुसार प्रसिद्ध माने गए हैं

2 COMMENTS

  1. Hey there just wanted to give you a brief heads
    up and let you know a few of the images aren’t loading properly.
    I’m not sure why but I think its a linking issue.
    I’ve tried it in two different internet browsers and both show the
    same results.

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