प्रकृति की उतुंग वादियों में अवस्थित भगवती पराम्बा जगदम्बिका मठियाणा मायी का प्रसिद्ध सिद्ध पीठ जनपद रुद्रप्रयाग के जखोली प्रखंड के भरदार पट्टी में सिलगाँव गाँव के ठीक ऊपर अवस्थित है।तिलबाड़ा सौंराखाल व जाखाल दो मोटर मार्गों से यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है। दोनों मोटर मार्गों से 2किमी० पैदल चढ़ाई पार करने के बाद माँ के भव्य मंदिर के दर्शन करके सारी थकान मिट जाती है।* *रास्ते में सुन्दर बाँज, बुराँश, अंयार, चीढ़, मेलू, के वृक्ष प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं। मन्दिर से दिव्य हिमालय के दर्शन और भी मनमोहक बना देता है, बसन्त व शरद ऋतु में प्राकृतिक छटा अति मनमोहक, सुखकारी, दुःख हारी व कल्याणकारी लगती है।(घेंदुड़ी) गौरैया, सेंटुली (नीलकंठ) घुघूती (फाख्ता) तीतर, चकोर, मैना (मेलुड़ी) तोता आदि पक्षियों का कलरव मनो को लुभाने वाला व अतिसुखदायी लगता है।
वास्तव में हमारा उत्तराखण्ड तो धरती में एक स्वर्ग है जिसके कण- कण में, पत्थर – पत्थर में देवताओं का वास है। अब ले चलता हूँ उस दिव्य कथा की ओर जिस कारण से माँ का यह दिव्य धाम रचा बसा है।
उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है। आपको यहां कदम कदम पर बड़े चमत्कार और रहस्य देखने को मिलेंगे।
प्राचीन लोक कथाओं के अनुसार माँ मठियाणा सिरवाड़ी गढ़ के राजवंशों की धियाण थी। जिसका विवाह भोट यानि तिब्बत के राजकुमार से हुआ था। सौतेली माँ द्वारा ढाह वश कुछ लोगों की मदद से उसके पति की हत्या कर दी जाती है।
पति के मरने की आहत जिसका नाम सहजा है, तिलवाड़ा सूरज प्रयाग में सती होने जाती है। तब यहीं से मां प्रकट होती है। देवी सिरवाड़ी गढ़ में पहुंचकर दोषियों को दंड देती हैं, और जन कल्याण के निमित्त यहीं वास लेती हैं। हर तीसरे साल सहजा मां के जागर लगते हैं। जिसमें देवी की गाथा का बखान होता है, यहां देवी का उग्र रूप है, बाद में यही रूप सौम्य अवस्था में मठियाणा खाल में स्थान लेता है। मठियाणा खाल में बसने के कारण माँ का दूसरा नाम मठियाणा मायी पड़ा वैसे असली नाम सहजा ही है।
यहीं से मां मठियाणा का नाम जगत प्रसिद्ध होता है। मां के दर्शन कर पुण्य लाभ के लिए यहां हर वक्त खासकर नवरात्र पर भक्तों का जमावड़ा रहता है। मठियाणा देवी माता शक्ति का काली रूप है तथा ये स्थान देवी का सिद्धि-पीठ भी है।
यह भी कहा जाता है कि माता के अग्नि में सती होने पर भगवान शिव जब उनके शरीर को लेकर भटक रहे थे तब माता सती का शरीर का एक भाग यहाँ भी गिरा, बाद में इस भाग माता मठियाणा देवी कहा गया।
मठियाणा का आशय इस स्थान की मिट्टी से हो सकता है। क्योंकि इस स्थान की मिट्टी अत्यन्त पावन व घरों के लीपने – पोतने के लिए पहले से उपयोग में लायी जाती होगी ऐसा मेरा अनुमान है। क्योंकि पुराने समय में जहाँ – जहाँ से घरों को लीपने – पोतने के लिए मिट्टी लायी जाती थी। उस स्थान को मठखाणी के नाम से जाना जाता है।*
*मेरी इस पुण्य भगवती के तीर्थ की भगवती की असीम अनुकम्पा से तीन यात्राएं हो गयीं हैं। माँ अपने भक्तों पर अपनी असीम कृपा दृष्टि बनाये रखती हैं। मौका मिले तो भक्त जन भगवती पराम्बा जगदम्बिका मठियाणा मायी के दर्शन कर पुण्य के भागी अवश्य बनें।
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